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Archive for November, 2010

भरवां टिंडा

आवश्यक सामग्री
टिंडा आधा किलो
प्याज -1
खोया- 50 ग्राम
नमक -स्वादनुसार
लाल मिर्च पाउडर – स्वादनुसार
हल्दी पाउडर- आधा चम्मच
धनिया पाउडर- 1 चम्मच
सौंफ पाउडर आधा चम्मच
अमचूर आधा चम्मच
तलने के लिए तेल

विधि
सबसे पहले टिंडों को अच्छे से छीलकर धो लें। अब एक चाकू की मदद से टिंडों के ऊपर छेद करके उसके अन्दर का सारा गूदा निकाल दें। अब निकले हुए गूदे को एक तरफ रख दें, जो कि बाद में इस्तमाल के लिए काम में आएगा। अब एक प्लेट में छोटा-छोटा बारीक प्याज काट लें और खोए को घिस लें। इसके बाद अब एक कटोरा लें और सभी मसाले नमक, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर, सौंफ पाउडर और अमचूर का मिश्रण मिला लें। अब कटा हुआ प्याज और खोए का मिश्रण मसाले में अच्छी तरह से मिला लें।

टिंडे की सब्जी को बनाने से पहले एक करछी तेल एक क ढ़ाई में गरम कर लें। अब तैयार किया हुआ मिश्रण गरम किए हुए तेल में अच्छे से 2 मिनट के लिए मंदी आंच पर भून लें। कुछ देर तक मसाले को भूनने के बाद गैस बंद कर दें। अब तैयार किया गया मिश्रण एक थाली में निकाल लें। अब तैयार मसाले के मिश्रण को सबसे पहले खोखले किए गए टिंडों में भर दें। अब फिर से कढ़ाई में दो करछी तेल गरम करें और मसाला भरे हुए टिंडे उसमे पकने के लिए रख दें। अब एक थाली से कढ़ाई को ढंक कर लगभग 15 मिनट के लिए रख दें। इसके बाद धीरे धीरे समय समय पर टिंडों को पलटते रहें ताकि वे नीचे से जल न जाएं। मंदी आंच पर टिंडों को तब तक पकाए जब तक टिंडे हर तरफ से भूरे रंग के और नरम न हो जाएं। जब टिंडे अच्छे से पक जाएं तो गैस बंद कर दें। आपके भरवा टिंडे तैयार हैं जिन्हें चपाती, पराठे और चावल के साथ गरमा गरम परोसें।

अरबी की सब्जी

सामग्री :
घुर्इंया (अरबी) – 450 ग्राम
प्याज – 100 ग्राम
टमाटर – 75 ग्राम
जीरा – एक चुटकी
अदरक और लहसुन का पेस्ट – 20 ग्राम
लाल मिर्च पाउडर – 5 ग्राम
हल्दी – 10 ग्राम नमक – स्वादानुसार
धनिया – 10 ग्राम (कटी हुई)
सरसों का तेल – 30 ग्राम
गरम मसाला – एक चुटकी
इमली का पल्प – एक बड़ी
चम्मच तेल – तलने के लिए

विधि : सबसे पहले घुईयां को अच्छे से धो लें। उसके बाद थोड़ा नमक मिलाकर उबाल लें। उबलने के बाद पानी निकाल दें और ठंडा होने दें। ठंडा करने के बाद उसके छिलके को निकाल लें। अब प्याज, टमाटर को काटें और अलग रख लें। अब एक कढ़ाही में तेल गर्म करें और घुईयां को डीप फ्राय करके अलग रख दें। फिर एक कढ़ाही में सरसों का तेल गर्म करें, उसमें जीरा डालें। फिर कटा हुआ प्याज डालकर सुनहरा होने तक पकने दें। उसके बाद टमाटर, अदरक-लहसुन का पेस्ट, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर, नमक, थोड़ा पानी डालकर मिला लें और मध्यम आंच पर पकने दें। ग्रेवी तैयार होने के बाद उसमें घुईयां डालें और अच्छे से मिला दें। ऊपर से इमली का पल्प डालें और 5-10 मिनट तक पकने दें। ऊपर से कआ हुआ धनिया और गरम मसाला डालें। गर्मा-गर्म सर्व करें।

वधू का पहनावा

विवाह का मौसम आ चुका है और इसकी तैयारियां भी जोरों पर शुरू हो चुकी हैं। ऐसे में बाजार में इस वक्त ज्यादातर चीजें ब्राइड्स को ध्यान में रखकर डिजाइन की जा रही हैं। दुल्हन की खास जरूरतों में से एक होता है गहना। गहनों का पैटर्न, ट्रेंड, डिजाइन या मटेरियल भले ही वक्त के साथ बार-बार बदला हो, लेकिन गहने पहनने की रवायत में कोई बदलाव नहीं आया है।

एक बार फिर बदलाव– अगर फैशन गुरुओं की बात मानें तो इस बार फिर से गहनों के ट्रेंड में अच्छा खासा बदलाव देखा जा रहा है। ज्वेलरी चाहे गोल्ड की हो, डायमंड या पर्ल की, फिर से एंटीक स्टाइल की ज्वेलरी पहनने का ट्रेंड चल पड़ा है। इसमें बेंदे के साथ साइड की लड़, बड़े-बड़े झुमके, कंठहार, बड़ी माला आदि शामिल हैं। हाथ में भी सिर्फ अंगूठी नहीं, बल्कि उससे जुड़ती लड़ वाले ब्रेसलेट फिर से इन हो गए हैं। हैवी ज्वेलरी के इस ट्रेंड को पसंद भी किया जा रहा है।

ओल्ड इज गोल्ड- यह नया दौर आने से पुरानी पीढ़ी बहुत ज्यादा खुश है। बीच में एक वक्त ऐसा था कि दादी- नानी से विरासत में मिले गहनों को पिघलाकर नए डिजाइन के जेवर बनवा लिए जाते थे। इससे उनका दिल भी टूटता था और सोने का नुकसान भी होता था। अब फिर से वही ट्रेंड आ जाने की वजह से वे गहने ज्यों के त्यों पहने जा सकते हैं।
पर्ल इज़ द बेस्ट- कहते हैं पर्ल या मोती पहनने से केवल बाह्य सौंदर्य ही नहीं, बल्कि भीतरी सौंदर्य भी निखरता है। इसलिए दुल्हन के गहनों में मोती का विशेष महत्व नजर आने लगा है। व्हाइट गोल्ड की ज्वेलरी में सजे पर्ल ड्रॉप मोती बेहद ही नाजुक और खूबसूरत लगते हैं, लेकिन चलन के मुताबिक इस डिजाइन में भी हैवी सेट्स ही चल रहे हैं।
डायमंड है इन- सोने की लगातार बढ़ती कीमतों ने लोगों का ध्यान डायमंड की ओर भी आकर्षित करना शुरू कर दिया है। इस ज्वेलरी की खासियत यह है कि भारी सेट होने के बावजूद यह गॉडी नहीं, सोबर लुक देता है। इसका पूरा सेट आपको एलीगेंट ही नहीं, बल्कि एलीट लुक प्रदान करता है।
ड्रेस के अकॉर्डिंग मैचिंग– पहले के जमाने में शादी का जोड़ा अमूमन लाल ही रहता था और जेवर सोने के बनते थे, लेकिन अब शादी का जोड़ा भी कई रंगों से सज चुका है। कॉम्बीनेशन कलर्स के जमाने में यह जोड़ा रेड एंड व्हाइट, ग्रीन एंड मैरून, क्रीम एंड मैरून, येलो एंड रेड या पिंक एंड ब्लू भी हो सकता है। इसलिए अब ज्वेलरी बनवाते वक्त शादी के जोड़े के रंग का ध्यान रखा जाता है। इसके मुताबिक ज्वेलरी में मीनाकारी करवाई जाती है या फिर बड़े स्टोन्स जड़वाए जाते हैं। यह भी एकदम ट्रेडिशनल और एंटीक लुक देता है।
रिमेंबर दिस – शादी के जोड़े के साथ यदि सुनहरे रंग के जेवर मैच नहीं कर रहे हों, तो अपनी वेडिंग ड्रेस के साथ व्हाइट गोल्ड या डायमंड की ज्वेलरी पहनें। – वेडिंग ड्रेस को इस तरह से पहनें की गहनें कहीं छिप न जाएं। – यदि आपकी नाक नहीं छिदी है और आर्टिफिशियल नथ पहनना भी आपके लिए कठिन है, तो नथ की जगह पर एक डेकोरेटिव बिंदी लगा लें। नथ का लुक मिलेगा। – अगर आपने शादी के लिए लाइट ज्वेलरी ही बनवाई है, तो ड्रेस और ट्रेंड के अकॉर्डिंग ज्वेलरी किराए पर ला सकती है। इससे वेडिंग डे पर लुक भी मिल जाएगा और आपका बजट भी नहीं गड़बड़ाएगा।

चने की भाजी

सामग्री :
हरी चना भाजी – एक किलो
लहसुन – 30 ग्राम (कटा हुआ)
राई – 5 ग्राम
टमाटर – 250 ग्राम
हरी मिर्च – 30 ग्राम (कटी हुई)
तेल – 50 ग्राम
नमक – स्वादानुसार

विधि : चने की भाजी को धो लें। उसके बाद उसे थोड़े पानी में उबाल लें। इसी पानी के साथ चने की भाजी को पकाया भी जाएगा। उबलते समय भाजी में नमक भी डाल दें। एक कढ़ाही में तेल गर्म करें उसमें राई डाल दें, फिर ऊपर से टमाटर, लहसुन, हरी मिर्च डालकर थोड़ा पका लें। अब उसमें भाजी डालें और आवश्यकतानुसार नमक डालें। थोड़ी देर पकने दें। गर्मागर्म सर्व करें।

मलाई पनीर

सामग्री:
250 ग्राम पनीर,
3 प्याज,
2 टी स्पून कटी हुई अदरक,
नमक स्वादानुसार,
1 चुटकी हल्दी,
1 टीस्पून पिसी हुई काली मिर्च,
2 टी स्पून कसूरी मेथी,
टी कप मलाई,
थोड़ा सा हरा धनिया,
1 हरी शिमला मिर्च टी स्पून तेल।

विधि: सबसे पहले पनीर को टुकड़ों में काट लें। इसके बाद प्याज, अदरक और हरा धनिया भी काट लें। फिर शिमला मिर्च भी पनीर की तरह काट लें। एक कड़ाही में तेल गरम करके प्याज को तब तक फ्राई करें, जब तक कि वो हल्के सुनहरे रंग का न हो जाए। इसमें कटी हुई अदरक , कसूरी मेथी, काली मिर्च पाउडर और नमक मिलाइए। अब इसमें शिमला मिर्च डालकर पकाएं। इसके बाद हल्दी और पनीर डालकर मिलाएं। क्रीम और हरा धनिया डालकर सर्व करें।

दाल फ्राई

आवश्यक सामग्री  
# 1 कप अरहर दाल  
# 1 प्याज लंबे टुकड़ों में कटा हुआ
# 1 हरी मिर्च कटी हुई
# 1 टमाटर बारीक कटा हुआ  
# 1 चम्मच सरसों, जीरा, धनिया और मेथी का मिश्रण  
# 1 चम्मच हल्दी  
# 1 चम्मच पिसी लाल मिर्च
# 1 इंच अदरक किसा हुआ
# 2 चम्मच तेल
# 2 चम्मच हरी धनिया पत्ती कटी हुई  
# नमक स्वादानुसार

विधि
तूअर की दाल को अच्छी तरह से धो लें। उसके बाद उसमें 2 कप पानी डालें और प्रेशर कुकर में डालें और पकाने के लिए गैस पर रख दें। दाल में दो सीटी आने के बाद गैस की आंच मंदी कर दाल को 10 मिनट के लिए पका लें। दाल अच्छे से पकने के बाद गैस बंद कर दें। अब कुकर ठंडा होने के बाद दाल को ढक्कन खोलकर निकाल लें। इसके बाद दाल को मथनी से मथ लें ताकि दाल और पानी अच्छी तरह से मिल जाए। 
सबसे पहले कढ़ाई में तेल डाल कर अच्छे से गरम कर लें। अब तेल गरम हो जाने के बाद उसमें सरसों, जीरा, धनिया और मेथी के को मिलाकर बने मिश्रण को तेल में डाल दें। इसके बाद जब सरसों चटकने लगे तो उसमें कटी हुई प्याज को डालकर हल्का ब्राउन होने तक मंदी आंच पर भून लें। जब प्याज हल्की ब्राउन हो जाए तो उसमें कद्दूकस किए हुए टमाटर और अदरक को डाल दें। इसके बाद मसाले को कुछ देर तक चलाते हुए पकाए ताकि प्याज और टमाटर नरम पड़ जाए। मसाला भुनने के बाद उसमें हल्दी और नमक डाल कर अच्छी प्रकार से मिला दें और दाल को कढ़ाई में डाल

वेज कीमा मटर

सामग्री: 400 ग्राम सोया ग्रेन्युल्स,
250 ग्राम हरा मटर,
1/2 कप दही,
1 प्याज,
4 टी स्पून तेल ,
5 काली मिर्च,
4 लौंग,
1 मोटी इलायची,
1/4 टी स्पून जीरा,
1 टी स्पून धनिया पाउडर
,1/2 टी स्पून हल्दी पाउडर,
1/4 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर,
1 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर,
1 स्पून अदरक का पेस्ट, लहसून का पेस्ट,
1/2 टी स्पून गरम मसाला पाउडर,
नमक।

विधि: सोया ग्रेन्युल्स को गरम पानी में 15 मिनट के लिए भीगो दें। अब कुकर में तेल गरम कर उसमें जीरा, गरम मासाला डाल दें। इसमें अदरक, लहसुन का पेस्ट और प्याज, हल्दी डालकर भूने। धनिया, हल्दी, लाल मिर्च और नमक डालें। इसमें ग्रेन्युल्स और मटर डालकर 1 गिलास पानी डालकर सीटी आने तक पकाएं। जब सब्जी बन जाए तो उसमें गरम मसाला मिला दें। प्याज और तंदूरी रोटी के साथ सर्व रके।

क्रोध का तोड़ आपके भोजन में

पूर्ण निरोग तथा स्वस्थ रहने की कामना हो, तो क्रोध को अपने पास भी नहीं फटकने दें। क्रोध न तो शरीर को स्वस्थ रहने देता है और ना ही समाज में सम्मान पाने देता है। जहां देखो, वहीं बिगाड़ करता है।

क्रोध के कारण- व्यक्ति तो जन्म से शांत होता है। क्रोधी तो कभी नहीं। हालात ही उसे क्रोधी बना देते हैं। साथी संगी गलत होने पर भी व्यक्ति क्र ोधी हो जाता है। परीक्षा या किसी काम में बार बार की असफलता से। किसी भी कारण से हीन भावना पालने वाला व्यक्ति क्रोधी हो जाता है। कमजोर व्यक्ति को भी बात-बात पर क्रोध में आ जाता है। लंबी बीमारी भी व्यक्ति को क्रोधी बना देती है। अभिभावकों, माता-पिता द्वारा हर समय टीका-टिप्पणी भी बच्चों को क्रोधी बना देती है।
उपचार- अधिक क्रोध आने के ऊपर बताए कारण हो सकते हैं। इनके अतिरिक्त और भी कारण संभव हैं। यह तो व्यक्ति के अपने वातावरण पर निर्भर करता है। निम्नलिखित उपचार कारगर सिद्ध हो सकते हैं।उपचार भी ऐसा, जिसमें दवाओं की नहीं, बल्कि सात्विक आहार में ही ऐसे गुण होते हैं, जो आपके क्रोध को शांत करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
गुलकंद व दूध: बहुत गुस्सा आता हो तो रोजाना रात के समय गुलकंद का एक बड़ा चम्मच खाकर, गुनगुना दूध पिया करें।
सेब का सेवन: क्रोधी व्यक्ति प्रात: खाली पेट, अच्छी किस्म के दो पके हुए मीठे सेब खाना शुरू करें। स्वभाव बदल जाएगा। आंवेल का मुरब्बा व दूध: बात- बात पर क्रोध करने वाला व्यक्ति प्रात: आंवले का मुरब्बा खाना शुरू करे और गुनगुना दूध भी पिए।
चबाने की आदत: कोई भी तरल पदार्थ, पेय पदार्थ, यहां तक कि जूस, दूध, पानी सीधे नहीं चढ़ा जाए। इसे रुक-रुककर, धीरे- धीरे पिएं। भोजन में कुछ भी खाएं, भले ही खीर, कस्टर्ड, दही जैसे नर्म पदार्थ इन्हें भी चबा- चबाकर खाएं।
नशा व मांस: यदि बहुत जल्दी क्रोध आता है, तो मांस, मछली, अंडा, शराब या अन्य कोई नशा न करते हों तो छोड़ दें।
पानी का करें सेवन: प्रतिदिन दस गिलास पानी पिया करें। अपने आहार में शहतूत, पोदीना, सौंफ, संतरा, नींबू, छोटी इलायची, खस-खस का शर्बत, बादाम शर्बत शामिल करें। पेठा: मिठाई के तौर पर पेठा क्रोध शांत करने में मदद करता है।
प्रात: की सेर: क्रोधी व्यक्ति प्रात: खुली हवा में सैर तो किया ही करें, ध्यान, प्रायायाम आदि भी करें। अवश्य लाभ होगा। जो व्यक्ति इन बातों को अपने ध्यान में रखकर, इनमें से कुछ ही, अपना ले तो आप शांत रह सकेंगे।

कितना जरूरी है हमारे लिए कैल्शियम

शरीर के स्वस्थ व संतुलित विकास के लिए हर उम्र में कैल्शियम की आवश्यकता होती है। जहां तक महिलाओं का प्रश्न है, हमारे देश की अधिकांश महिलाओं में कैल्शियम की कमी पाई जाती है। उनमें इसकी कमी किशोरावस्था से ही रहने लगती है, जो ताउम्र बनी रहती है। चूंकि महिलाएं गर्भधारण करती हैं तथा स्तनपान कराती हैं, इसलिए उन्हें खासतौर पर कैल्शियम की आवश्यकता होती है। सामान्य महिलाओं के लिए रोजाना 1000 मिलीग्राम, गर्भवती व स्तनपान करवाने वाली महिलाओं के लिए रोजाना 2010 मिलीग्राम कैल्शियम आवश्यक है। कैल्शियम की कमी के कारण हड्डियों का पोला या खोखला होना, उनका कमजोर हो टूटना, बार-बार फ्रेक्चर होना, कमर का झुकना व दर्द, हाथ-पैरों में झुनझुनी कमजोरी प्रमुख लक्षण हैं।

कमी के लक्षण- रक्तचाप का बढ़ना, दांतों का समय पूर्व गिरना, शरीर का विकास रुकना, हड्डियों में टेढ़ापन , शरीर के विभिन्न अंगों में ऐंठन या कंपन, जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में निष्क्रियता, जरा से टकराने पर हड्डियों का टूटना, चोट लगने पर रक्त का बहना बंद होना, मस्तिष्क का सही ढंग से काम न करना, भू्रण के विकास पर बुरा प्रभाव।
कैल्शियम के स्रोत- अनाज: गेहूं, बाजरा, दालें: मूग, मोठ, चना, राजमा, सोयाबीन, सब्जियां- गाजर, भिंडी, टमाटर, ग्वारफली, ककड़ी, अरबी, मूली, पत्तागोभी, मैथी, पुदीना, हराधनिया, करेला, चुकंदर, चौलाई, टिंडा, तुरई, नींबू, पालक, बथुआ, बैगन, लहसुन, लौकी, हरी मिर्च।
सूखे मेवे: बादाम, पिस्ता, मुनक्का, तरबूज के बीज, अखरोट, अंजीर। फल: अमरूद, आम, संतरा, अनानास, सीताफल, अनार, अंगूर, केला, खरबूजा, जामुन, नासपाती, पपीता, लीची, शहतूत, सेब।
मसाले: जीरा, हींग, लौंग, काली मिर्च, धनिया, अजवाइन, तेल। 
दुग्ध पदार्थ: दूध, दही, पनीर, मक्खन।
कंद: अदरक, सूरन, रतालू। कैल्शियम के अवशोषण के लिए विटामिन डी का सेवन बहुत जरूरी है। इसके लिए रोजाना 15 मिनट धूप पर्याप्त है।

वजन के बारे में गलत धारणा सेहत को खतरा

हाल ही में हुए एक शोध में विशेषज्ञों ने आशंका जाहिर की है कि अपने वजन के बारे में महिलाओं की गलत धारणा उनके लिए सेहत संबंधी कई परेशानियों का सबब बन सकती है। यह धारणा महिलाएं स्वयं के विश्लेषण के आधार पर ही बना लेती हैं। महिलाओं का एक वर्ग वजन बढ़ने के बाद भी खुद को नॉर्मल मानने का है और कुछ ऐसी गलत धारणा उन महिलाओं को भी हो सकती है, जिनका वजन सामान्य होता है और फिर भी वे खुद को ओबेसिटी का शिकार मान लेती हैं। मतलब महिलाओं में इस तरह के दो समूह हैं, जिनकी गलत धारणा का संबंध सिर्फ वजन को लेकर है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि प्रत्येक चार महिलाओं में से एक महिला को इस तरह का भ्रम होता है कि उनका वजन नार्मल है या बढ़ रहा है।

टेक्सास मेडिकल ब्रांच, गाल्वेस्टन के शोधकर्ता महबुबुर्रहमान का कहना है कि इस तरह की गलत अवधारण महिलाओं में वजन नियंत्रित करने वाले प्रोग्राम्स और एक्सरसाइज से भी उनका ध्यान हटा देती हैं और वे इनसे वंचित रह जाती हैं। दूसरी ओर वे नार्मल महिलाएं हैं जो खुद को ओवरवेट समझती हैं। वे डाइट पिल्स या अन्य वजन घटाने वाली दूसरी विधियों का उपयोग कर खुद को दूसरी तरह के नुकसानों से ग्रस्त कर लेती हैं।

इसके लिए रहमान महिलाओं को हिदायत देते हैं कि वे अपने वजन की सही जानकारी एकत्र करने के बाद ही यह निर्णय लें कि आखिर उन्हें ओबेसिटी की समस्या है भी या नहीं। उस आधार पर वे वजन घटाने के उपाय करें और गलत धारणा के आधार पर कोई निर्णय न लें नहीं तो सेहत संबंधी अन्य परेशानियां उन्हें सता सकती हैं।

केसर सेंवइयां

सामग्री
: सेंवई – 150 ग्राम भुनी 
पानी – 750 मि.ली. 
जैतून का तेल – 3 छोटे चम्मच 
केसर – 5-7 चीनी – 50 ग्राम 
किशमिश व काजू – 100 ग्राम 

विधि : सबसे पहले एक कड़ाही में तेल गर्म करें। इनमें काजू और किशमिश को भून लें। और निकालकर अलग रख दें। इसी तेल में सेंवर्इं को भून लें और एक तरफ रख दें। अब पानी में केसर डालकर गर्म करें। उबलने लगे तब सेंवई डाल दें। फिर इसमें चीनी या कोई आर्टिफिशियल स्वीटनर डालकर अच्छी तरह पकने तक चलाएं। चलाते समय ध्यान रखें कि सेंवइयां टूटे नहीं। बीच में एक छोटा चम्मच जैतून का तेल डालकर चला दें। जब सेंवइयां पक जाएं तो भुने काजू, किशमिश डालकर ठंडा करके परोसें।

अवसाद से बचाव

जॉब या पढ़ाई के लिए घर से दूर शहरों में रह रहे युवा अकेलेपन और डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि परिवार से दूरी, उनकी बढ़ती अपेक्षाएं और जॉब या पढ़ाई का दबाव इसके बाद किसी अपने का करीब न होना, किसी से मन की बात न कह पाने की परेशानी के चलते अलग-अलग शहरों से शहर आकर पढ़ाई या जॉब करने वाले युवा अवसाद और अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं।   समाजशास्त्रियों का मानना है पारिवारिक सपोर्ट परिजनों द्वारा युवाओं को समझने और सफलता-असफलता में बराबर उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहना युवाओं को इस तरह की परेशानी से दूर रख सकता है। यह सही है कि व्यावसायिक मजबूरी के चलते युवाओं का लगातार या बार-बार परिवार के पास पहुंचना संभव नहीं लेकिन अगर परिजन निश्चित समय अंतराल पर उनसे मिलने आते रहते हैं तो वे इस तरह की समस्या से बच सकते हैं।

घेरता डिप्रेशन– हॉस्टल में रहने वाले अंतरमुखी युवा इस तरह की परेशानी का सामना जल्द करने लगते हैं। छोटी सी असफलता भी उन्हें परेशान करती है। समाजशास्त्रियों का कहना है कि वे युवा जिनके माता-पिता दोनों जॉब में होते हैं और बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते, जो बच्चे घर में अकेले होते हैं, जो बच्चे शुरू से ही संयुक्त परिवार के हिस्सा नहीं रहे हों वे कई बार मानसिक रूप से कमजोर होते हैं और माता-पिता से संवाद की कमी होने के कारण अपनी समस्या किसी के साथ शेयर नहीं कर पाते।
टिप्स-
# अपनी क्षमताओं को पहचानें और उसके अनुसार गोल सेट करें।
# माता-पिता परिवार से कोई भी बात न छिपाएं।
# उन्हें अपनी सफलता व असफलता से अवगत कराएं।
# असफलता को जीवन की असफलता न मानें बल्कि इसे कुछ सीखने के रूप में लें।
# दोस्तों से स्वस्थ संबंध रखें उनके साथ खुशी और गम शेयर करें।
# योग की मदद लें। मॉर्निंग वाक करें और अधिकतम फिजिकल एक्सरसाइज भी करें।
# हस्तियों की आटोबायोग्राफी पढ़ें। स्वस्थ साहित्य पढ़कर समय बिताएं।
सुझाव पेरेंट्स के लिए
# बच्चों के साथ स्वस्थ संवाद बनाए रखें।
# घर में आने वाली सभी परेशानियों और खुशियों की जानकारी उन्हें दें और उनके साथ सेलिब्रेट करें ताकि बच्चे परिवार से अधिक से अधिक जुड़ सकें।
# बच्चों के पढ़ाई और जॉब के अनुभव लगातार और लगभग प्रतिदिन जानते रहें।
# बच्चों के दोस्तों से भी संबंध बनाए रखें और उनसे भी जानते रहें कि उसके ग्रुप में क्या चल रहा है।
# अगर आपको लगता है कि बच्चा बेहतर नहीं कर पा रहा तो उसे अधिक मानसिक सपोर्ट मुहैया कराएं।
# बच्चे को समझाएं कि अपेक्षित सफलता ही सब कुछ नहीं हर व्यक्ति अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमता के अनुसार सफलता अर्जित करता है।
# बच्चे को योग की खूबियों से परिचित कराएं और योग अपनाने की सलाह दें। प्रयास करें आपकी अधिकतम छुट्टियां बच्चों के साथ बीतें।
# बर्थडे जैसे सेलिब्रेशन तो उसके साथ आपका रिश्ता मजबूत करेंगे ही अपने मैरिज एनिवर्सरी जैसे सेलिबे्रशन में भी उन्हें शामिल करें। अगर वे आप तक न आ सकें तो आप उनके पास पहुंचे।
# बच्चे की क्षमताओं को आप बेहतर जानते हैं अत: गोल सेट करने में मदद करें।
# पढ़ाई कर रहे बच्चे के टीचर्स और जॉब कर रहे बच्चे के इमिडिएट बॉस से उसकी परफॉर्मेंस के बारे में जानते रहें और आवश्यकतानुसार मदद मुहैया कराएं।
# बच्चों की सफलता को भी खुलकर सेलिब्रेट करें, इसका पूरा श्रेय उनकी मेहनत को दें। सफलता के आगे का गोल सेट करने के बजाए उसे रμतार मेंटेन कर चलने की सलाह दें।

मधुमेह का असली कारण नहीं है शुगर

शुगर के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वह दिल की बीमारी, मोटापे, दांत खराब करने, बच्चों में हाइपरऐक्टिविटी और मधुमेह का कारण है, लेकिन हकीकत यह नहीं है। यह भी सच है कि शुगर ऐसी रिक्त कैलोरी, जिससे ऊर्जा तो मिलती है, लेकिन और कोई पोषण नहीं। लेकिन यह शरीर के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है। यह सफेद क्रिस्टलीय पदार्थ हमारी जैविक प्रणाली का एक जरूरी हिस्सा है। शुगर हमारे दिमाग को सचेत रखती है। और यह ईंधन शरीर को दिन भर एनर्जेटिक रखता है। अक्सर लोगों के भोजन में बहुत सी शुगर होती है, पर उन्हें इसका आभास तक नहीं होता। यह शुगर खासकर आधुनिक जमाने के प्रौसेस्ड खाद्य पदार्थों व विविध पेय पदार्थों में अधिकता में मौजूद है। निष्क्रिय जीवनशैली, एक जगह बैठ कर काम करने की संस्कृति का संबंध हमारी डायबिटीज से है। इसलिए शहरी लोगों की आरामतलबी डायबिटीज की एक अहम वजह है।

मिथक एवं तथ्य मिथक 1– बहुत मात्रा में शकर खाने से डायबिटीज होती है।
तथ्य-टाइप1- डायबिटीज इंसुलिन बनाने वाली 90 प्रतिशत से अधिक कोशिकाओं के हृस से होती है, जो पैंक्रियाज में मौजूद होती हैं। इसका संबंध शुगर के सेवन से नहीं है।
टाइप2- डायबिटीज में पैंक्रियाज इंसुलिन बनाता रहता है, कभी कभार सामान्य स्तर से भी अधिक मात्रा में, किंतु शरीर इंसुलिन के असर पर प्रतिरोध विकसित कर लेता है, जिससे शरीर की आवश्यकता पूरी करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन नहीं होती।
मिथक 2– मधुमेह के मरीज मीठा नहीं खा सकते।
तथ्य– मधुमेह के रोगी कुछ हद तक अपने संतुलित भोजन के हिस्से के तौर पर मीठा खा सकते हैं। इसके लिए उन्हें अपनी खुराक में कार्बोहाइड्रेट की कुल मात्रा को नियंत्रित करना होगा। मिष्ठान से सिर्फ कैलोरी मिलती है कोई पोषण नहीं । इसलिए मीठे को सीमित करें, लेकिन उसे बिल्कुल दरकिनार नहीं।

मिथक: 3- कम कार्बोहाइड्रेट वाली खुराक मधुमेह ग्रस्त लोगों के लिए अच्छी होती है। तथ्य: कम कार्बोहाइड्रट वाला भोजन प्रोटीन वसा से भरपूर होता है। उच्च वसा तथा उच्च प्रोटीन वाली खुराक से दिल और गुर्दे की बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। मधुमेह ग्रस्त रोगियों को ऐसी भोजन योजना बनानी चाहिए, जिससे उन्हें कार्बोहाइड्रेट सेवन को संतुलित करने में मदद मिले

नियंत्रण करें मधुमेह को

निष्क्रिय जीवनशैली का नतीजा है मधुमेह। यह इसलिए होता है की हमारा शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या फिर इंसुलिन को ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता और होती हैं कई परेशानियां। अत: योगासनों का मधुमेही के शरीर पर विशेष सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर में खून की मात्रा नियंत्रित होती है, साथ ही पैंक्रियाज की क्रियाशीलता बढ़ती है, जिससे इंसुलिन स्रावित होता है। साथ ही इनसे खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा व रक्तचाप नियंत्रित होता है, जो कि मधुमेह रोगों में आम है तथा तनाव भी नियंत्रित होता है। इसके लिए 20 से 30 मिनट तक योगाभ्यास करें। सुबह उठकर नित्यकर्म के बाद स्वच्छ हवादार स्थान या बगीचे में कंबल या कार्पेट बिछाकर अभ्यास प्रारंभ करें।

वज्रासन
दोनों पैर मोड़कर बैठें, दोनों पैरों के अंगूठे एक के ऊपर एक रखें। दोनों हाथ घुटनों पर रखें व पीठ सीधी रहे। सभी आसनों में एकमात्र यही आसन है, जिसमें खाना खाने के फौरन बाद लगभग 20 मिनट तक बैठना चाहिए, धीरे-धीरे समय बढ़ाएं। इसके अभ्यास से पाचन क्रिया सुचारू होती है और पेट से संबंधित व्याधियां दूर होती हैं और कब्ज मिटती है।

पश्चिमोत्तासन
दोनों पैर सामने फैलाकर ऐड़ी मिलाकर बैठें। दोनों हाथ ऊपर सीधे और पीठ सीधी रहे। अब श्वांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें दोनों हाथों से दोनों पैरों की अंगुलियों को पकडें  कोहनी घुटनों के साइड से जमीन से टच करें नाक दोनों घुटनों के बीच रहे। अब कुछ सैकंड रुकते हुए वापस उठते समय श्वांस लेते हुए उठें। इस प्रकार से 10 बार करें। बिल्कुल धीरे-धीरे करें झटका न दे। इसके अभ्यास से पेट की सभी तकलीफें दूरी होती है। पैंक्रियाज पर प्रेशर पड़ता है इंसुलिन का स्राव बढ़ जाता है, कमर लचीली होती है। चर्बी कम होती है व मानसिक तनाव कम होता है।

अर्द्ध मत्स्येंद्रासन
दोनों पैर सामने फैलाएं। दाएं पैर को बाएं घुटने के साइड में रखें। अब बाएं पैर को दायीं तरफ मोड़ते हुए ऐड़ी दाएं नितंब के पास रखें। बाएं हाथ को दाएं पैर के बाहर की ओर रखें और दाएं पैर के टखने को पकड़ें। दायां घुटना बाएं कंधे से टच होता हो। दायां हाथ मोड़कर पीछे पीठ पर रखें। अब शरीर को दायीं तरफ मोडें। गर्दन पीछे की तरफ मुड़ी रहेगी। कुछ देर तक इसी स्थिति में रुकने के पश्चात फिर इसका अभ्यास दूसरी दिशा में करेंगे, श्वास क्रिया सामान्य रहेगी। इस आसान का अभ्यास कम से कम चार बार करें। इससे पैंक्रियाज की क्रियाशीलता बढ़ाती है।

गोमुखासन
बाएं पैर को मोड़कर ऐड़ी को दाएं नितंब के पास रखे। दाएं पैर को बांई जांघ के ऊपर रखे। घुटने एक के ऊपर एक रहें। अब बाएं हाथ को पीठ के पीछे ले जाएं। दाएं हाथ को भी दाएं कंधे पर से पीछे ले जाएं। अब दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में बांधें। पीठ बिल्कुल सीधी रहे। मधुमेह दूर करने में यह आसन कारगर है।

सांस की बदबू से परेशान हैं?

क्या आप अपनी ही सांस की बदबू से परेशान हैं?
हमारा मुंह तमाम जीवाणुओं का जाल है ये जीवाणु दांतों के कोनों में जीभ, मसूड़े आदि जगहों पर छिपे होते हैं जो भोजन के अंशों पर जीवित रहते हैं जिससे बहुत से जीवाणुओं के किया कलापों से ऐसी गैसें बनती हैं, जो बदबूदार होती है। इसकी वजह से हमारी सांस में बदबू हो जाती है। परंतु हर व्यक्ति के मुंह से बदबू क्यों नहीं आती इसका उत्तर सरल है हमारे मुंह जो लार बनती रहती है उसमें जीवाणु नाशी शक्ति होती है यह जीवाणु को पनपने से रोकती है और सांस बदबूदार होने से बचाती है। लेकिन जब किसी वजह से मुंह में लार कम बनती है या सूख जाती है तब ये जीवाणु बेकाबू हो जाते हैं और सांस दुर्गंध युक्त हो जाती है। भूख, प्याज, सिगरेट, बीडी, शराब पीना, अधिक बोलना, बंद नाक के दौरान मुंह सूख जाता है लार सूख जाता है और मुंह से बदबू, आने लगती है उम्र के साथ-साथ शरीर के अधिकांश अंगों की कार्यक्षमता भी घटने लगती है और ग्रंथी भी इससे बच नहीं पाती है यही कारण है कि युवाओं के अपेक्षा वृद्धों में ज्यादा बदबूदार सांस की बीमारी होती है। बच्चों में लार पैदा करने की क्षमता सर्वथा अधिक होती है जिसकी वजह से उनकी सांस में एक अलग तरह की भीनी-भीनी गंध आती है।
सांस की बदबू दूर करने के आसान तरीके

  • अपनी लार ग्रंथी को फिर से साकार करने की जरूरत है। इसके लिये पान खायें। मिश्री मुंह में रखकर चूसें फिर पानी पियं तुरंत सांस की बदबू गायब हो जायेगी।
  • भोजन को अधिक चबाकर खाना चाहिये कारण अधिक चबाने से मुंह में अधिक लार बनती है और मुंह के अधिक जीवाणुओं को नष्ट कर देती है और बचे कुचे जीवाणु भोजन के साथ पेट के अंदर चली जाती है।
  • दांतों को ब्रश से साफ करें क्योंकि कैसे-कैसे के जीवाणुओं के नष्ट कर।
  • हल्का भुना जीरा चबाये बदबू जाती रहेगी।
  • हरा धनिया पत्ता चबाऐ।
  • जब भी पानी के नजदीक जाये कुल्ला अवश्य करें।
  • .इलायची या मुलेठी चबाते रहें।
  • एक चम्मच अदरक का रस गुनगुने पानी में डालकर कुल्ला करें।
  • मुंह साफ करते समय दांत, जीभ तालू मसूड़े सबकी ठीक से सफाई करने चाहिये। कोई भी माउथ वॉश इस्तेमाल करते हैं। उससे थोड़ी देर के लिये इस समस्या से निजात जरूर मिल जाता है पर फिर वही बदबू कारण इनमें जो अलकोहल है वह मुंह को सुखा देता है हमारी लार ग्रंथी उससे प्रभावित होती है। और लार को सुखा देती है और सांस की बदबू फिर आने लगती है। इसके लिये हर थोड़ी देर पर पानी पियें। ऐसी चीजों का सेवन करें जो लार ग्रंथी को सक्रिय रखें तथा जीवाणुओं को पनपने दें।

टॉसिंल (जल्द से जल्द आराम दिलाने वाला नुस्खा)

  • मुंह के द्वारा शरीर में प्रवेश करने वाले बाहरी तत्वों को गले में ही रोककर हमारी कई रोगों से रक्षा करता है ये टॉसिल बढ़ना कहते हैं। कई बार इस छोटी सी सूजन की परेशानी पर अगर ध्यान न दिया गया तो ये कई जटिलताऐं पैदाकर सकती है। इसका अंतिम उपाय है ऑपरेशन। वैसे तो कोई भी रोग हो अगर तुरंत चिकित्सा न की गई तो ठीक करने की या ठीक होने की संभावनाऐं बहुत कम हो जाती हैं। समय रहते आप छोटे से छोटे रोगों का भी उपचार करें तो अच्छा है। अगर टॉसिल बढ़ भी गया हो तो कोई बात नहीं इस नुस्खे को प्रयोग में लाकर आप काफी हद तक फायदा पा सकते हैं।
  • सामग्री-
  • 1.अकरकरा 4 ग्राम
  • 2. सेंधा नमक डेढ़ ग्राम
  • शीतल चीनी 3 से 4 ग्राम
  • छोटी पीपर- 4 ग्राम
  • 5.अनार का छिलका – 25 ग्राम
  • 6.मुलहठी – 5 ग्राम
  • विधि- सबको मैदे जैसा महीन पीस शीशी में रख लें। रोगी इस पाउडर को अंगुली से टॉसिल पर दिन में तीन-चार बार मुंह नीचे करके लगाये ताकि लार टपके। पूर्ण रूप से लाभ मिलने तक इसे प्रयोग करें। पहले दिन से ही लाभ महसूस करने लगेंगे।

मुंहासे (Pimples,Acne)

युवावस्था में मुंह पर छोटे-छोटे दाने फुन्सियां निकलती है जिससे चेहरा कुरूप लगने लगता है। इसे मुंहासे कहते हैं। अधिकतर ये तैलीय त्वचा पर निकलते हैं अतः चेहरे पर क्रीम तेल कोई चिकनाई युक्त पदार्थ न लगाऐं ये हार्मोन की गड़बड़ी, त्वचा की सफाई न करने, पेट की खराबी से भी होते हैं।
इन्हें हाथ से न फोड़ें निशान पड़ जाते हैं।
मुंहासे खाने पीने की गलत आदत से भी होते हैं। कारण जब पेट अपना काम सुचारू रूप से नहीं करता जिसकी वजह से जो भी टॉक्सिक बाहर आ जाना चाहियें वो नहीं आ पाता तथा रक्त में जहरीले पदार्थ फैल जाते हैं और वह इस रूप में बाहर निकलते हैं। ऐसे भोजन जिनमें स्टार्च, प्रोटीन, वसा अधिक हो उनसे बचना चाहिये।
मांस, सफेद चीनी, कड़क चाय, अचार, कॉफी, रिफाइंड, सॉफ्ट ड्रिंक्स, आइस्क्रीम, मैदे से बनी चीजें कम खानी चाहिये।
उपचार
कील मुंहासे के दाग को छुड़ाने के लिये विटामिन इ का सेवन अवश्य करें।
यदि मुंहासे हो गये हों तो ठीक करने के घरेलू उपाय..…..

  • यदि चेहरे पर दाग, मुंहासे से बिगड़ गया हो तो रोजाना पुदीने का पेस्ट का लेप करें एक माह तक, चेहरा सुंदर हो जायेगा।
  • बेसन को छाछ में लेप बनाकर चेहरे पर लगाऐं।
  • बीस-पच्चीस दाने काली मिर्च गुलाब जल में पीसकर रात को चेहरे पर लगायें सुबह गर्म पानी से धो लें। इससे कील मुंहासे झुर्रियां साफ होकर चेहरा चमकने लगता है।
  • रोज कच्चे टमाटर का रस पियें इससे शरीर की गंदगी बाहर निकलती है।
  • चेहरा नीम के साबुन से धोयें। नीम उबाले पानी से धोयें, त्वचा तैलीय नहीं होगी तो मुंहासे निकलना बंद हो जायेगा।
  • तीन चम्मच राई थोड़े से पानी में भिगा दें सुबह पीसें इतना ही पानी डालें जो पेस्ट बन जाये चेहरे पर इसे लगायें 20 मिनट बाद धोलें कील मुंहासे मिट जायेंगे।
  • जामुन खाने से लाभ होता है। पाचन क्रिया सरलता से होती है।
  • भोजन से आधा घंटा पहले  एक बड़ा चम्मच मेथी चूर्ण जल से निगल लें।
  • दो करेला को धो काटकर आधा गिलास पानी में उबालकर इस पानी को पीने से
  • लाभ होगा।
  • चने व जौ के आटे से बनी रोटी खायेंयानि अधिक फाइबरयुक्त चीजें खायें,सलाद कच्ची सब्जियों तथा फलों का ।
  • नारियल पानी में भिगाकर)चेहरे पर अच्छी तरह चिपकाकर सूखने तक रहने दें झुर्रियां और सलवटें भी दूर हो जाती है । नारियल तेल में पाया जाने वाला “लौरिक एसिड” मुंहासे दूर करने में कारगर है। नारियल तेल को सीधे चेहरे पर लगाने से मुंहासे आसानी से दूर हो सकते हैं।
  • कच्चे अंजीर का दूध मुंहासों पर लगाने से मुंहासे समाप्त हो जाते हैं
  • कच्चे पपीते का दूध गालों और चेहरे पर लगाने से मुंहासे ठीक हो जाते हैं
  • जामुन की गुठली पानी के साथ घिसकर मुंहासों पर लगाने से मुंहासों में लाभ होगा
  • सिरके में कलौंजी को पीसकर लेप बनाएं और उसे रोज आना सोते समय पूरे चेहरे पर मलें । सुबह पानी से साफ कर लें ।इस प्रयोग को कुछ दिनों तक लगातार करने से चेहरे पर बहुत प्रभाव होगा ।
  • तीन चम्मच बेसन, चौथाई हल्दी, चुटकी भर कपूर और नींबू का रस मिलाकर पेस्ट बनाकर चेहरे पर लेप करें । सूखने के बाद ठन्डे पानी से धोने से मुंहासे ठीक हो जाते हैं
  • नींबू के रस को चहरे पर मलने से कील-मुंहासे ठीक हो जाते हैं कारण नींबू चेहरे की   अतिरिक्त तैलीयता(एक्सट्रा ऑयल) को खींच लेता हैनींबू के रस को  चार गुना ग्लिसरीन में मिलाकर चेहरे पर रगड़ने से कील-मुंहासे नष्ठ हो जाते हैं । और चेहरा सुन्दर बन जाता है, इसका प्रयोग सारे शरीर पर करने से त्वचा कोमल और चिकनी होती है
  • अशोक की छाल को पानी में उबालकर  काढ़ा बना लें । गाड़ा होने पर इसे मुंहासों, फोड़े-फुंसियों पर लगाएं । इसके नियमित प्रयोग से मुंहासे दूर हो जाएंगे
  • ज्यादा चॉकलेट खाने वाले किशोरों में मुहासों की समस्या हो सकती है। नॉर्वे के एक अध्ययन में  चॉकलेट और चिप्स के अत्यधिक सेवन से तथा  ताजा और कच्ची सब्जियों कम खाने से मुहासे निकलने का कारण स्पष्ट हुआ है।
  • बेल के पत्तों को पीसकर कपड़े में बांधकर उसका जूस तीन-चार  चम्मच प्रतिदिन पीने से से मुंहासे ठीक हो जाते हैं

हकलाना कोई रोग नहीं है, सिर्फ दोष है

सामान्य व धाराप्रवाह ढंग से बोलने में अयोग्यता को हकलाना कहते हैं। कभी-कभी सामान्य व्यक्ति भी तनाव,घबराहट,डिप्रेशन,आवेग में क्षणिक हकला जाता है इसका यह मतलब नहीं कि वह व्यक्ति हकलाता है।

हकलाना मतलब- बोलने वाला बालक या व्यक्ति पहले शब्द के उच्चारण में कठिनाई महसूस करता है।उसकी जीभ मुंह में खिंच जाती है और मुंह की मांसपेशियों में स्वत: संकोच आ जाता है फलस्वरूप बोलने के लिये झटका सा लगाना पड़ता है।यह एक ऐसी मानसिक कुंठा है जिसे सिर्फ हकलाने वाला ही समझ सकता है या फिर चिकित्सक। हकलाहट के कारण व्यक्ति,या बालक के गुणों का स्वाभाविक विकास नहीं हो पाताहै।हालांकि कि वे मानसिक रूप से मंद नहीं होते लेकिन वाणी दोष उनकी प्रतिभा को उजागर नहीं होने देती।

हकलाने के कुछ कारण-
-वंशानुगत भी होता है
-हकलाकर बोलने की नकल करते करते आदत बन जाती है
-आक्समिक सदमा लगने से भी
-बहुत जल्दी-जल्दी बोलने की आदत
-तनाव,घबराहट,आवेग की स्थिति में
यह सब वाणी दोष को जन्म देती है लेकिन इससे पीड़ित व्यक्ति समझ नहीं पाता ऐसी स्थिति में व्यक्ति को विशेषज्ञ(डॉ) के पास जाना चाहिये।
सामान्य हकलाहट को सुनियोजित अभ्यास तथा समुचित प्रशितक्षण द्वारा घर पर ही ठीक किया जा सकता है।
समस्या तब होती है जब यह गंभीर रूप धारण करले।ऐसे में व्यक्ति पूर्ण रूप से कुंठित हो जाता है।परंतु इससे संबंधित तमात संस्थाएं भी हैं।जैसे-ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट,ऑफ स्पीच एंड हियरिंग, मनिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ बैंगलोर जहां इस रोग की चिकित्सा की जाती है।इन केंद्रों में वाणी सुधार के लिये कोई भी व्यक्ति भर्ती हो सकता है।उन्हें ठीक होने में तकरीबन तीन माह का समय लग जाता है या फिर कई बार इससे भी ज्यादा। यह स्वयं रोगी पर निर्भर करता है कि रोगी कितनी कुशलता से पूरा कर पायेगा।
इसको सुधारने में सबसे अधिक भूमिका माँ-बाप को ही निभीनी होती है।
माँ बाप को चाहिये कि ऐसे बालकों के लिये

निम्न उपाय करें
-धीरे धीरे बोलने का अभ्यास कराऐं
-स्वर उच्चारण पर ध्यान दें कारण स्वर ही शब्द तथा वाणी का आधार है
-हकलाने के बावजूद भी खूब बोलने तथा पढने का अभ्यास करायें।
-बच्चे या व्यक्ति को अनावश्यक सोच विचार में न फंसने दें
-जब कोई हकलाकर कर बोलता है तो लोग अक्सर हंस देते हैं जो हकलाने वाले के लिये अपमान जनक होता है।उसे प्रेम तथा स्नेह से समझाना चाहिये।हकलाकर बोलने वाले बालक को अपने इस दोष से निजात पाने के लिये बराबर अभ्यास कराना चाहिये न कि कुंठित होकर बैठ जानें दें।
बच्चों में तुतलाना और हकलाना प्राय देखा जाता है। यह वास्तव में कोई रोग नहीं होता वरन कुछ पौष्टिक तत्वों की शरीर में कमी के कारण ही होता है। तुतलाने और हकलाने की दशा में निम्न जड़ी-बूटियों का प्रयोग दिये गये तरीके से करने में लाभ अवश्य होता है।
1. बच्चे को एक ताजा हरा आँवला रोज चबाने के लिये दें। बच्चे से कहें कि पूरा आँवला वह चबा कर खा ले। इससे बच्चे की जीभ पतली हो जायेगी और उसके मुख की गर्मी भी समाप्त हो जायेगी। बच्चे का तुतलाना और हकलाना बन्द हो जायेगा।
2. बादाम गिरी 7 और काली मिर्च 7 लेकर कुछ बूंद पानी में घिस कर चटनी बना लें और उसमें थोड़ी-सी मिश्री मिला लें तथा बच्चे को चटा दें। नियमित रूप से लगभग एक या दो माह तक ऐसा करें। हकलाना और तुतलाना समाप्त हो जायेगा।
3. प्रातकाल मक्खन में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर चाटने से कुछ ही दिनों में हकलाहट दूर हो जाती है।
4. तेजपात को जीभ के नीचे रखने से हकलाना और तुतलाना ठीक हो जाता है।
5. हरा धनिया व अमलतास के गूदे को एक साथ पीस कर रख लें। पानी मिलाकर 21 दिनों तक कुल्ली करने से हकलाहट समाप्त हो जाती

मधुमेह(DIABETES) में दवाईयों के साथ-साथ आहार-विहार का महत्व

मधुमेह के रोगी का आहार तथा विहार-
ग्लूकोज  तुरंत ऊर्जा का एक स्त्रोत है।परंतु शरीर की कोशिकाओं में इसके प्रवेश के लिए इन्सुलिन की आवश्यकता होती है या यूं कहें कि हमारे शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज के प्रवेश करने का मार्ग खोलती है।जब भी भोजन द्वारा उत्पन्न ग्लूकोज का उपयोग शरीर की कोशिका नहींे कर पाती है ,तो रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है और यही कारण है जो मधुमेह को जन्म देती है अत:मधुमेह इन्सुलिन हार्मोन की कमी या उसकी कार्यक्षमता में अवरोध के कारण उत्पन्न होता है।

नियमित समतुलित व्यायाम(विहार) का मधुमेह के उपचार में बहुत महत्व है.।व्यायाम से शर्करा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।मांसपेशियों द्वारा ग्लूकोज के उपयोग को बढाती है।स्थूलकाय शरीर का वजन कम करती है।कोलोस्ट्रॉल को नियंत्रित रखती है।
व्यायाम करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
मधुमेह के रोगी के लिये घूमना ,टहलना,सबसे अच्छा व्यायाम होता है परंतु इसके अलावा टेनिस, बैडमिंटन,साइकलिंग भी कर सकता है।

मधुमेह में दवाईयों के साथ- साथ आहार का भी बडा महत्व है।

-शक्कर का किसी भी प्रकार से सेवन न करें।
-कुछ भोज्य पदार्थ किसी भी मात्रा में खाया जा सकता हैजैसे नींबू,पानी,तथा सब्जियों का सूप,नारियल पानी।
तथा धूम्रपान से दूर रहना चाहिये मांस,मदिरा का सेवन न करें।
-मधुमेह के रोगी को अधिक कैलरी वाली कार्बोहाइड्रेट लेना उपयुक्त है भोजन में रेशेदार पदार्थका सेवन करेंवसायुक्त(चिकनाई) भोजन कम करें।
-भोजन को अधिक चबाकर खाना चाहिये।
-मधुमेह के रोगी के लिये आंवला, करेला ,प्याज ,ककडी,टमाटर ,चौलाई,कटहल,नारियल पानी,संतरा,जामुन ,मेथी की सब्जी लाभकारी है
– मधुमेह के रोगी को अंण्डा,अदरक ,इडली ,पपीता,अनार,मखाना,बदाम,पत्तागोभी, पेठा,पेस्ट्री,मीठे बिस्किट,चिप्स,मेवे,मूंगफल्ली का सेवन कम करना चाहिये। अधिक पके फलों का सेवन न करें इससे शूगर बढने का डर होता है। जहां तक हो सके कुछ कच्चा फल ही खाने की कोशिश करें।
-मधुमेहकेरोगीकोआइस्क्रीम,खजूर,चीकू,बादा,किशमिश,आमलेट,शहद,ग्लूकोज,चीनी, के सेवन से बचें।
सदाबहार के फूल (बारह मासी के फूल)इसे अपने  घर पर गमले में लगा सकते हैं ये बैंगनी तथा सफेद  इन दो रंगों में फूल होता है ।आप बैंगनी  रंग वाला फूल इस्तेमाल करें।एक कप उबला पानी लेकर चार पांच फूल कप मेंडाल कर छोड दें थोडी देर बाद फूल को पानी में मसलकरफूल फेंक दें पानी पी जायें ये उपाय सुबह सबेरे नित्यकर्म से खाली होकर खाली पेट करें सात दिन तक यही प्रयोग करते रहें फिर सात दिन के लिये बंद कर दें ब्लड़शुगर चेक करवायें यदि नार्मल हो तो ये उपाय छोड दें वरना सात दिन बाद फिर शुरू करें इस तरह करें जब तक ब्लड़शुगर नार्मल न हो जायें ये उपाय दो से तीन माह तक आजमाए जा सकते हैं। ये उपाय कारगर तथा सस्ता भी है।
-नीम ,हरड,बहेडा, करेला,गूलर ,आंवला किसी भी रूप में, जामुन तथा इसके सूखी  बीज का पावडर तथा प्याज आदि लाभप्रद है। इसके अलावा सावाां ,कोदो जौ चना  पालक,चौलाई केला कुंदरू का सेवन भी करना चाहिये
अच्छा तो ये होगा कि समय रहते ही या युवावस्था से ही आहार विहार का विचार करना शुरू कर दें।

गर्भावस्था में मधुमेह(Diabetes)

मधुमेह का गर्भावस्था पर काफी असर पडता है।इसकी तीन स्थितियां होती है।  इन तीनों ही अवस्था में इनकी देखरेख डॉक्टर की निगरानी में होना चाहिये कारण मधुमेह मां तथा भ्रूण दोनों के स्वास्थ पर बुरा असर डाल सकती है।

  • मधुमेह से ग्रस्त स्त्रियां जो गर्भधारण करना चाहती हैं
  • मधुमेह से ग्रस्त स्त्रियां जो गर्भवती हैं
  • स्त्रियां जिन्हें गर्भावस्था(pregnancy)  में मधुमेह हो जाता है
  • मधुमेह तब होता है जब  शरीर में इंशुलिन नहीं बन पाता या शरीर इंशुलिन का उपयोग नहीं कर पाता क्योंकि इंशुलिन ऐसा हार्मोन है जो रक्त की शर्करा को कम करता है।

गर्भावस्था में ,हार्मोन्स में होने वाले परिवर्तन इंशुलिन की कार्यविधि में हस्तक्षेप करते है तथा रक्त में शर्करा का स्तर बढा देते हैंजिससे स्थिति  और खराब हो जाती है जिससे कभी कभी गर्भावस्था में किये गये जाच में इसका पता नहीं चलता और गर्भधारण के बाद  विकसित होता हैजो चौबीसवें या फिर अठ्ठाइसवें हफ्ते बाद दिखाई पडने लगता है परंतु समय के साथ साथ कभी कभी ठीक भी हो जाता है  इस पर ध्यान न दिया गया तो मधुमेह की जटिलताएं प्रभावित करती है जो मां के लिये खतरा पैदा कर सकती है।जैसे यूरिन इनफेक्शन,या उच्चरक्तचाप। यदि इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो गर्भावस्था(pregnancy)  के प्रथम तीन  माह में जब शिशु  का विकास हो रहा होता है तोशिशु के स्वास्थ को खतरा पैदा कर  सकता है और जन्म के समय खराबी आ सकती हैतथा इसकी चरम स्थिति में गर्भपात भी हो सकता है।प्रीमेच्योर डिलिवरी की स्थिति का सामना भी करना पड़ सकता है।
आहार तथा विहार की योजना कैसी हो (pregnancy) में

  • आहार ऐसा होना चाहिये जिससे कैलरी ठीक मात्रा में मिलती रहे जो वजन सही रखने में मदद करें जिससे गर्भधारण(pregnancy)  के सही परिणाम प्राप्त हों।
  • भोजन को चबा चबाकर करें वरना उदर स्थित अंगो को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ सकती हैयही अनियमितता मधुमेह का कारण बन सकती है भोज्य पदार्थ को बिना चबाए न निगलें।
  • इसके लिये बिना पकी सब्जियां(सलाद) अंकुरित अनाज,का  अधिक सेवन करें।
  • चपाती ब्रेड,आलू,दलिया, जैसे कार्बोहाईड्रेट युक्त आहार लें।मौसमी फलों तथा सब्जियों(सलाद) का सेवन अवश्य करें ।उपवास से बचें।
  • अधिक चिकनाईयुक्त भोजन से बचें।भुना आहार लें। गुड,चीनी,शहद केक,चाकलेट के अधिक सेवन से बचें|
  • बाहर के खाने से बचें।

व्यायाम तथा चिकित्सा

  • मधुमेह के उपचार में शामिल है सही खानपान,रेगुलर व्यायाम ,खाने वाली दवाईयां (डाक्टरी जांच)इसुलिन इंजेक्शन।इस प्रकार की सही देखभालऔर उपचार से मधुमेह को नियमत्रित रखा जा सकता है। कारण इसका कोई स्थाई उपचार नहीं है।इसका उपचार आपकी सही हालत ,उम्र,वजन तथा अन्य समस्याओं पर भी नर्भर करता है।
  • व्यायाम से ब्लडप्रेशर तथा वजन नियंत्रित रहता है।
  • व्यायाम शुरू करने से पहले डॉक्टरी सलाह लें।इसुलिन लेने के तुरंत बाद व्यायाम न करें.
  • इस बीमरी से बचने के लिये मोटापा कम करें।
  • हर भोजन के बाद पैदल चलें  चाहे घर ही में क्यों न हो ,इससे रक्त में भोजन के बाद बनने वाली शर्करा के स्तर में सुधार होगा ।
  • धूम्रपान ,तथा शराब से दूर रहें।
  • शुगर लेवल बराबर चेक कराते रहें।
  • दवाईयां आप वैसे ही लेते रहें जैसे चल रही है।
  • व्यायाम में टहलना,योग ,(सूर्य नमस्कार) करें अति लाभदायक होगा, खाली पेट व्यायाम न करें। (हल्का नाश्ता)

मसूडों की बीमारी से भी हो सकते हैं मधुमेह (diabetes )के शिकार

मसूडों की बीमारी से भी हो सकते हैं मधुमेह (diabetes )के शिकार,एक शोध के बाद यह पता चला है कि मसूडों की बीमारी वाले लोग भी प्रौढावस्था में जाकर मधुमेह(diabetes) के शिकार हो सकते हैं।इस शोध के अनुसार मसूडों की बीमारी के कारण कीटाणु आसानी से रक्त में प्रवेश करके प्रतिरक्षित कोशिकाओं  को सक्रिय कर सकते है, ये सक्रिय कोशिकाएं साइटोकिन नामक पदार्थ पैदा करता है जो पूरे शरीर पर बुरा असर डालता है। 

साइटोकिन नामक पदार्थ के अधिक मात्रा में उत्पादन  होने से पेनक्रिया ग्रंथि की इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को नष्ट करती है और ऐसा होने पर उन लोगों को भी मधुमेह (diabetes)हो सकता है जिन्हें इसका कभी कोई खतरा भी नहीं था। अब स्वास्थ विशेषज्ञ लगों को यह चेतावनी दे रहें हैं कि मधुमेह(diabetes) की बीमारी के शिकार होने से बचने के लिये अपने दांतों और मसूडों की अच्छी तरह से देखभाल करें।

मधुमेह (डायबिटीस)क्या है

क्त में शर्करा का चयापचय ठीक ढंग से न होने के कारण रक्त में ग्लूकोस का स्तर बढ़ जाता है।बढी हुई शर्करा की यह मात्रा गुर्दो द्वारा भी ठीक तरह से अवशोषित नहीं हो पाती है ,जिससे मूत्र द्वारा शर्करा निकलने लगती है।रक्त शर्करा का स्तर सामान्य से अधिक हो जाने की इस स्थिति को मधुमेह कहते हैंमधुमेह एक जटिल रोग है। एक बार ये रोग हो जाने पर जीवन पर्यंत नहीं छोड़ता ।इसको नियंत्रित तो किया जा सकता है समय रहते। पर खत्म नहीं।इसका असर शरीर के सभी अंगो पर पडता है।
यह बिमारी आज तेजी से फैल रही है और अब तो ये बच्चों में भी तेजी से फैलने लगी हैजिसके कारण जीवन भर परहेज करना मुश्किल हो जाता है। मधुमेह रोग बहुत धीरे-धीरे फैलता है जो बहुत दिनों तक तो रोगी को इसका पता नहीं चलता। अधिकतर ये रोग ज्यादा वजन वाले व्यक्तियों में (चाहे औरत हो या मर्द) में देखा गया है पहले ये रोग बड़ों को होता था परंतु अब बच्चों भी होने लगा है। यह वंशानुगत भी होता है।
मधुमेह के  होने का कारण —मधुमेह तब होता है जब शरीर इंशुलिन  नहीं बना पाता ,या  इंशुलिन का उपयोग  नहीं कर पाता ,क्योंकि इंशुलिन ऐसा हार्मोन है जो रक्त की शर्करा को कम करता है। मैदे से बनी चीजें अधिक खाना, घी, तेल, मीठा, पौष्टिक भोजन कर श्रम न करना, जरूरत से ज्यादा आराम की जिंदगी बिताना या एक ही जगह पर कई घंटे बैठकर काम करना इससे उच्च रक्तचाप भी हो जाता है। गुर्दे पर इसका खराब असर पड़ता है।
शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में कहा है कि एक हफ्ते में 20 घंटे टीवी देखने से यानि एक ही जगह पर काफी देर तक  बैठे-बैठे  टीवी देखने से शरीर इंशुलिन  नहीं बना पाता तभी मधुमेह होता  है। मधुमेह के रोगी को अधिक मीठी चीजों से बचना चाहिये।मधुमेह के रोगी को अधिक प्यास लगती है। अधिक पेशाब लगती है।
लक्षण -मधुमेह के रोगी को अधिक प्यास लगती है। अधिक पेशाब लगती है।
कोई घाव हो गया तो जल्द ठीक नहीं होता।
पैरों की पिंडलियों में लगातार दर्द तथा ऐंठन रहना तथा सुन्न पड़ जाना।
शरीर की त्वचा सूखी रहना तथा पैरों के तलवे में जलन होना।
पेशाब में शर्करा आने से पेशाब में चींटी लगती है.
इससे बचने के लाभदायक नुस्खे

  • मीठे फल, चावल, मैदे से बनी चीजें नहीं खाना चाहिये। शारीरिक व्यायाम करना, रोज सैर करना तथा अल्प भोजन करना चाहिये
  • बैंगनी रंग के सदाबहार के कोमल ताजे फूल या पत्तें एक कप उबलते पानी में डालकर पांच मिनट के लिये ढककर रख दें फिर फूल को पानी में मसलकर उसपानी को पी जाये फूल फेंक दें  प्रातः काल सेवन करें
  • एक कप पानी में 5 ग्राम मेथी डालकर भिगो दें। उसके बाद उसी पानी में मेथी पीसकर पी जाये इससे रक्त में शर्करा मिलना बंद हो जायेगा
  • चार चम्मच आंवले का रस, 1 चम्मच हल्दी, 1 चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें मधुमेह में लाभ होगा।(शहद की मात्रा बिल्कुल कम रखें)
  • दो तीन  करेले का रस प्रतिदिन पियें(बीज हटाकर) मधुमेह ठीक होगा
  • पूरी नीद लें ये जरूरी है वरना डायबिटीस होने का खतरा बढ जाता है
  • अपने खानपान पर ध्यान दे सिर्फ दवाईयों से काम नहीं चलता है अपनी लाइफस्टाइ को बदलें
  • उचित व्यायाम भी रोज करें वजन नियंत्रित रखें एक बार में ही पेट फुलाकर भोजन न करें बल्कि थोडा थोडा कई बार में खायें,रात का भोजन हल्का करें
  • यदि आप दवा खा रहें हैं तो नियमित लेते रहें साथ अपनी जांच करवाते रहें
  • डायबिटीस का सबसे सस्ता व आसान इलाज है हंसना ये एक रामबाण दवा है जो हमे डायबिटीस से दूर रखता है बताया गया है कि डायबिटीस के मरीज को भोजन के उपरांत हंसना चाहिये यानि हंसना एक व्यायाम के तौर पर कर सकते है इसके लिये तमाम क्लब या योगा में भी अब हंसने का एक व्यायाम होने लगा है इससे ब्लडशुगर नियंत्रित रहता
  • चने व जौ के आटे से बनी रोटी खायें
  • बेल के पत्तों को पीसकर कपड़े में बांधकर उसका जूस  तीन चार  चम्मच प्रतिदिन पीने से मधुमेह में लाभ होता है
  • चाय का बड़ा चम्मच शिलाजीत प्रतिदिन दूध में मिलाकर पियें। मधुमेह के रोग में फायदा होगा।
  • दिन में दो बार मूली खाने से लाभ होता है
  • मधुमेह के रोगियों को रोज सलाद में नींबू डालकर खाना चाहिये। इससे बहुत फायदा होता है जड़ से तो नष्ट नहीं होता मधुमेह परंतु काफी हद तक फायदा होता है साथ दवा भी खाते पहिये रोग को नियंत्रण में रखने के लिये
  • सुबह सूर्योदय से पहले घांसपर नंगे पैर सैर करें। इससे शारीरिक शक्ति व स्फूर्ति में विकास होता है
  • मधुमेह के रोगी अधिक शारीरिक परिश्रम से बचें
  • मधुमेह के रोगी को प्यास अधिक लगती है उसे नीबू पानी पीते रहना चाहिये इससे प्यास बुझती है बार बार भूख लगने पर खीरा खायें उससे भूख मिटती है  कच्ची सब्जियाँ जैसे गाजर मूली पालक कच्चा खायें या गाजर पालक का मिलाकर जूस भी पी सकते हैं जो आंखो की कमजोरी भी दूर करती है ।डायबिटीस के रोगियों को लौकी ,तोरई ,परवल ,पालक ,पपीता ज्यादा प्रयोग करना चाहिये
  • शलजम का प्रयोग करें इससे रक्त में होने वाली शर्करा की मात्रा कम होने लगती है शलजम एक रामबाण सब्जी है
  • जामुन-मधुमेय के रोगियों के लिये जामुन एक बहुत लाभदायक फल माना जाता है या यूं कहा जाय कि यह एक औषधि के रूप में है ।मौसम में जितना हो सके खायें मौसम जाने पर उसकी गुठली को सुखाकर रखलें इसकी बीजों में जंबोलिन नामक तत्व होता है जो स्टार्च को शर्करा में बदलने से रोकता है इसकी गुठली को सुखाकर इसका पावडर बना कर रख लें इसे दिन में एक एक चम्म्च पानी के साथ इसके सेवन करें
  • अच्छी तरह पकी हुई जामुन उबलते पानी में डालकर ढंककर रख दें आधे घंटे के लिये फिर उसे हाथ से मसलकर उसी पानी के तीन हिस्सा करके दिन में तीन बार पियें इसे नित्य पीते रहें काफी लाभ होगा
  • मधुमेह के रोगियों कोअधिक तर मोटा अनाज (जिसमें फाइबर अधिक हो अंकुरित अनाज,बिना छाना आटा)खाना चाहिये यानि मोटा खाओ सुखी जीवन बिताओ कारण इससे कैल्शियंम की कमी नहीं होती और आप तमाम बीमारियो से वैसे ही दूर रहेंगे ये सुपाच्य भी होता है
  • आज कल बहुत सी चीजों पर शुगर फ्री लिखा होता है जिसे मधुमेह के रोगी आंख बंद करके इस्तेमाल करते है पर इसके साथ- साथ उसमें और भी कई कंटेंट (दूध ,घी, खोया) जैसे फैट व कैलोरीज होते है आप शुगर फ्री लिखा देखकर इस्तेमाल करते है जिससे आपका मोटापा बढता है
  • मधुमेह से पीडित व्यक्ति को  नियमित व्यायाम अवश्य करना चाहिये(प्राणायाम )
  • कम कैलोरी वाले पदार्थखाते है तो आप की आयु अधिक होती है करण कई खतरनाक बीमारियाँ आपको नहीं घेरती
  • मधुमेह से पीडित व्यक्ति को जोड़ों का दर्द भी सताता है- तो सूखे नारियल खाते रहे दर्द ठीक हो जायेगा
  • खाली पेट अखरोट खायें घुटने पर मालिश करें आराम मिलेगा
  • अरण्ड के पत्ते व मेहंदी को पीसकर घुटनों पर लेप करें
  • कनेर की पत्ती उबालकर पीस लें इसे मीठे तेल ((तिल का तेल)के साथ मिलाकर लेप करें घुटनों पर
  • सरसों के तेल में अजवाइन, लहसुन पकाकर उस तेल से मालिश करें दर्द दूर होगा
  • अगर वायु प्रकोप से दर्द हो रहा हो तो एक  हिस्सा सोंठ दो हिस्सा गुड लेकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर दिनभर में तीन चार गोलियां ले आराम आयेगा
  • गुड और मोटे आटे का हलवा बनाकर खायें जोड़ों का दर्द ठीक हो सकता है
  • खड़े होकर पानी पीने से घुटने में दर्द होता है। पानी हमेशा बैठकर पियें

ब्यूटी एट होम

इस वक्त होम ब्यूटी पाने का ट्रेंड कुछ फिर से तेज हो चुका है। होम रेमिडीज की ओर बड़े झुकाव को देखते हुए इस बार ट्रेंड आॅफ द वीक में पेश हैं कुछ परफेक्ट होम मेड फेस पैक और फेस स्क्रब्स की रेसिपीज़।
इन्हें आजमाकर आप भी पा सकेंगी कांतिमय त्वचा-

1. तैलीय त्वचा के लिए पैक
सामग्री – 2 बडे चम्मच मुलतानी मिट्टी,1 बड़ा चम्मच पोदीना पाउडर और आधा बड़ा चम्मच मैथीदाना पाउडर।
विधि – सारी सामग्री गुलाबजल या ताजे गुलाब के पेस्ट में मिला कर चेहरे पर 10 मिनट तक लगाकर रखें। ठंडे पानी से चेहरा धो लें। यह एस्ट्रिजेंट का भी काम करता है और तैलीय त्वचा में कसावट लाता है।

2. झुर्रीदार त्वचा के लिए पैक
सामग्री – 2 बड़े चम्मच मुलतानी मिट्टी, 1 बड़ा चम्मच मसूर दान पाउडर, 1 बड़ा चम्मच पोदीना पाउडर और 1 बड़ा चम्मच तुलसी पाउडर।
विधि – सारी सामग्री को मिलाकर किसी एअरटाइट डिब्बे में रखें। जब भी इस्तेमाल करना हो, तो ताजे फलों के रस या गुनगुने दुध के साथ मिलाकर चेहरे और गर्दन पर लगाएं। इसे 15 मिनट तक लगा रहने दें और सादे पानी से चेहरा धो लें। इस पैक को आप हफ्ते में 3 दिन लगा सकती हैं। 1-2 दिन के अंतराल में इस पैक का इस्तेमाल करें।

3. मुंहासे युक्त त्चचा के लिए पैक सामग्री
सामग्री – बड़ा चम्मच चंदन पाउडर, 1 बड़ा चम्मच नीम पाउडर, 1 बड़ा चम्मच तुलसी पाउडर और 1 बड़ा चम्मच समुद्री झाग।
विधि – सारी सामग्री को अनार के रस या गुलाबजल के साथ मिलाकर पेस्ट बनाएं। इसे चेहरे पर 15 मिनट तक लगाने के बाद ठंडे पानी से धो लें। हμते में 2 बार इस पैक का इस्तेमाल किया जा सकता है।

4. शुष्क त्चचा के लिए पैक
सामग्री – 2 बडे चम्मच मसूर दाना पाउडर, 1 बड़ा चम्मच चिरौंजी पाउडर, 3 बड़े चम्मच मिल्क पाउडर और चुटकी भर हल्दी पाउडर।
विधि – सारी सामग्री को थोड़े से दुध में मिलाकर पेस्ट बनाएं। इससे चेहरे पर 10 मिनट तक लगा कर रखें। ठंडे पानी से धो लें। हμते में इस 1-2 दिन के अंतराल मे 3 बार प्रयोग कर सकती हैं।

5. धूप से झुलसी त्वचा के लिए
सामग्री – 2 बड़े चम्मच ज्वार का आटा, 1 बड़ा चम्मच तुलसी पाउडर और 3 बडे चम्मच तरबूज के बीज का पाउडर।
विधि – जब भी जरूरत हो, तो थोड़े से दही में सारी सामग्री मिलाएं और चेहरे, गरदन और बांहों पर इस पैक को 20 मिनट तक लगाकर रखें। ठंडे पानी से धो लें। ऐसा दिन में 2 बार करें।

समर फैशन विद विंटर टच

लाबी सर्दियों का सुहाना मौसम अपनी आमद दर्ज करा चुकी है, लेकिन युवाओं के ऊपर से अब तक समर और मानसून की खुमारी नहीं उतरी है। चाहे बात लॉन्ग ड्राइव की हो या आइसक्रीम खाने की। उनके लाइफस्टाइल में जरा भी परिवर्तन नहीं आया है। यहां तक कि फैशन के मामले में भी युवाओं ने अब तक समर और मानसून फैशन का साथ नहीं छोड़ा है। यूं तो शुरुआती और आखिरी ठंड से बचने की सलाह बड़े-बुजुर्ग देते ही हैं, लेकिन अब यह सलाह युवाओं से मनवाना थोड़ा मुश्किल हो चुका है। जहां लड़के अभी भी टी- शर्ट्स और शर्ट्स में ही नजर आ रहे हैं, वहीं लड़कियों का भी केप्रीज़ और कट स्लीव्स टॉप्स व कुर्तीज़ से मोह भंग नहीं हुआ है। हां यह जरूर है कि इसके साथ-साथ वे विंटर फैशन को भी अच्छी तरह ब्लेंड कर रहे हैं।

अभी तो ये आगाज है
युवाओं के लिए अभी तो ठंड के मौसम का ढंग से आगाज़ भी नहीं हुआ है। ऐसे में गर्म कपड़ों के कलेक्शन की ओर उनका ध्यान न जाना ही लाजिमी है। पहले सिर्फ लड़कियों के लिए ही कहा जाता था कि उन्हें ठंड नहीं लगती है, लेकिन अब लड़कों पर भी ये जुमला फिट बैठने लगा है। वे भी प्रॉपर विंटर वियर्स पहनने की जगह फ्यूजन ट्रेंड को पसंद कर रहे हैं।
फ्यूजन यहां भी
यंगस्टर्स में फैशन काफ्यूजन दिखना आम बात है। इसलिए इस बार समर और विंटर फैशन का फ्यूजन उन्हें रास आने लगा है। अब लड़कियां या तो वॉर्म लेगिंग्स के साथ शॉर्ट स्लीव टॉप पहन रही हैं, या फिर मिनीज़ के साथ फुल लेंथ जैकेट का तरजीह दे रही हैं। इससे यह फ्यूजन साफ नजर आता है। कई बार विंटर वियर के नाम पर लड़कों के सिर पर सिर्फ स्टाइलिश कैप देखी जा सकती है, जो बहुत कूल लुक देती है।
स्टॉकिंग्स का सहारा
पिछले कुछ अरसे से शॉर्ट ड्रेसेज़ का ट्रेंड बढ़ा है। यूं तो विंटर्स में यह ट्रेंड धुंधला सा हो जाता है, लेकिन इस बार इसे अब तक बरकरार रखा गया है। लड़कियां ईवनिंग पार्टीज़ में भले ही स्टोल या स्मार्ट सा स्वेटर पहनने लगी हों, लेकिन शॉर्ट ड्रेसेज़ ही पहन रही हैं। हां ठंड से बचने के लिए स्टॉकिंग्स का सहारा जरूर ले रही हैं।

Guzarish Movie Review

कलाकार : रितिक रोशन, ऐश्वर्या राय, नफीसा अली, सुहेल सेठ, आदित्य राय कपूर आदि निर्देशक : संजय लीला भंसाली संजय लीला भंसाली की भावनात्मक फिल्मों की शृंखला में एक बार फिर ‘गुजारिश’ दर्शकों के लिए तैयार है, जो इमोशंस से भरपूर है। रितिक रोशन अपनी भूमिका को हमेशा बेहतर तरीके से निभाने के लिए जाने जाते हैं और संजय लीला भंसाली जैसे निर्देशक का साथ पाने के बाद वह क्या कर सकते हैं? यह बताने की जरूरत नहीं है।
 

ऐश्वर्या ने अपने काम और खूबसूरती प्रभावित किया है। इसका टाइटल सांग पहले ही हिट हो चुका है। कहानी इथान (रितिक रोशन) की है, जो बड़ा मैजीशियन था, लेकिन एक एक्सीडेंट के बाद से वह पिछले चौदह सालों से व्हीलचेयर पर है। व्हीलचेयर पर बैठे इथान की देखभाल करने वाली खूबसूरत नर्स सोफिया डिसूजा (ऐश्वर्या राय) पिछले बारह सालों से उसके साथ साए की तरह है।

इथान रेडियो जॉकी है, जिसकी जिंदादिली से श्रोता खुश होते हैं। उन्हें नहीं पता है कि इथान किसी ऐसे शख्स का नाम है, जो व्हीलचेयर पर अपनी जिंदगी के दिन काट रहा है। इथान अपनी जिंदगी को खत्म कर देना चाहता है, ताकि अपने चाहने वालों का दुख कम कर सके, लेकिन फिर कुछ ऐसा होता है कि वह फिर से जीना चाहता है। इमोशंस से भरपूर यह फिल्म कुछ हटकर चाहने वालों को पसंद आएगी, जबकि मसाला फिल्में पसंद करने वाले इससे निराश हो सकते हैं। सुनने में आया है कि यह फिल्म वर्ष 2004 में आई एक स्पैनिश फिल्म ‘सी इंसाइड’ से प्रेरित है।
एक्टिंग
इससे पहले भी अपने रोल और लुक के साथ एक्सपेरिमेंट करने वाले रितिक रोशन ने इस बार ऐसा प्रयोग किया है जिसे करने से ग्लैमर इंडस्ट्री का हर बड़ा स्टार परहेज करेगा। कामयाब जादूगर और वील चेयर पर जिंदगी गुजारते एक शख्स के भावों को उन्होंने अपने अभिनय से जीवंत कर दिया है। इस मुश्किल भूमिका को निभाने के लिए उन्होंने अच्छा खासा होमवर्क किया जो साफ नजर आता है। ऐश्वर्या ने भी अपने रोल को खूबसूरती से स्क्रीन पर उतारा है। वैसे ऐश को जब भी भंसाली का साथ मिला उन्होंने लाजवाब काम किया। आदित्य रॉय कपूर और मॉडल मोनीकांगना ने भी ठीकठाक ढंग से निभाया है।

डायरेक्शन
भंसाली ने इस कहानी को ईमानदारी के साथ बिना किसी तड़क भड़क के पेश किया है। एंथेन की मानसिकता और उसके व्यवहार को उभारने में उन्होंने पूरी जान दी है। कहानी का ज्यादातर हिस्सा उन्होंने खूबसूरत आउटडोर लोकेशन पर फिल्माया है , जो कि मूवी का प्लस पॉइंट है। लेकिन दूसरी तरफ कहानी की धीमी रफ्तार और किरदार हर क्लास की कसौटी पर फिट नहीं बैठते।

संगीत
फिल्म के ज्यादातर गाने सुरीले हैं और कहानी के माहौल पर फिट बैठते हैं। मूवी में पहली बार संगीत दे रहे भंसाली ने साबित कर दिया है कि संगीत पर भी उनकी पकड़ कसी हुई है। फिल्म में पब कल्चर का कोई गाना नहीं है , इसके बावजूद संगीत के शौकीनों के लिए खूबसूरत है।

आंवला – Amazing Benefits of Amla

आमला के चमत्कारी गुण
Amla, or Indian gooseberry, is considered as dhatri, or motherly figure. Thanks to its health benefits, amla has also been worshipped in Indian culture since ages.
Ayurveda, which is the oldest health system in the world, appreciates and uses amla to treat a host of diseases and promote positive health.
Amla [Emblica officinalis, or emblic myrobalan], is called amalaki in Sanskrit. It is extensively used as a rejuvenator in ayurveda. It is also used widely in combination with other two [chebulic and belleric] myrobalans [fruit-bearing plant species] as triphala. Amla is, indeed, the key ingredient in the popular ayurvedic recipe, Chyavanaprasha. More than anything, it may be called as “King of Rasayana” [rejuvenation], owing to its multiple health benefits.

Amla in ayurveda

Ayurveda describes amla as a cooling, astringent, digestive, laxative, stomachic, and aphrodisiac medicine. It also has anti-pyretic, anti-inflammatory and diuretic properties. Due to its numerous therapeutic effects on various organs and systems, it has been found to be useful in problems ranging from chest diseases such as cough, asthma, and bronchitis, digestive ailments like dyspepsia, hyperacidity and ulcers and anaemia, jaundice, diabetes, bleeding conditions, eye diseases, allergic and other skin problems to gynaecological problems.

Food and digestion

Amla strengthens absorption and assimilation of food. It improves digestion and stimulates our taste buds to relish food better. It can be used by everyone without fear of gastric irrita-tion, or increased acidity. It can also be used to ease “too much heat” – a popular belief – in the body. It aids in better absorption and assimilation of iron from the gut. It also acts as a laxative in large doses due to its high fibre content.
Amla is best used as an ingredient in our diet regularly. It can be used as an alternative to tamarind, lemon or such other fruits to add flavour to food. It can be used as dry powder, fresh juice; or for dressing, by grating it coarse, or fine. It can also be used to prepare chutneys [paste] to be used as an adjuvant in our meals. It can be preserved for a long time in sugar syrup or as pickle and used regularly.
Amla is one of the best sources of natural vitamin C. It contains 20 times more vitamin C than an orange. Even when it is dried, or baked, it contains tannins, which prevent loss of vitamin C. Vitamin C, an anti-oxidant, fights free radicals, which cause many chronic and grave diseases like arthritis, high blood pressure, heart problems, Alzheimer’s, cancer, and so on. Vitamin C is also required for our body’s natural defences and healing mechanisms.

Look good

Amla boosts absorption of calcium. Thus, it helps in the formation, maintenance, and repair of bones, teeth, nails and hair. It also helps maintain youthful hair colour and retards premature greying. In addition, it supports the strength of the hair follicles. This translates to less thinning of hair with age.
Amla enhances protein synthesis by means of which bodily tissues, especially the muscles, are strengthened and toned up. It is, therefore, very useful to athletes and those who exercise regularly for maintaining muscular health and eliminating toxic products, the result of muscle activity.

Physiological benefits

Amla is useful in reducing LDL [“bad”] cholesterol and thus preventing arterial blockages that may cause heart attack or stroke.
Amla, when consumed in its natural form, as raw fruit or dry powder, can reduce chest congestion and facilitate the removal of sputum from the respiratory tract. It can soothe and heal inflamed airways and thus, is useful in cough, bronchitis, and other problems of the respiratory system.
Amla is also known to act as a very good brain and nerve tonic. It improves memory, tolerance, and nervous function.
Exposure to chemicals and consumption of chemically-treated food or drinks results in the accumulation of toxins in body tissues. This affects the functioning of the liver. Amla helps in elimination of toxins. It strengthens the liver in the process. Regular use of amla will result in an efficient defence system in the body against harmful substances.
The fresh juice of amla acts as a diuretic; it also normalises acidic urine. It is helpful in burning urination and urinary infections.
It is known that amla is beneficial during chemotherapy and radiotherapy due to its adaptogenic[balancing effect on your body’s systems] and rejuvenating properties.

Amla for common ailments

Dry Cough

Take half tsp amla powder mixed with a little ghee [liquefy the ghee]. Take frequently.

Piles

Take wild amla juice, or powder, with cream top of yoghurt, twice a day.

White vaginal discharge [leucorrhoea]

Take 1 gm amla powder with one tsp honey and one tsp crystal sugar mixed together, thrice a day.

Internal bleeding [Rakta Pitta]

Wild amla one gm, with one tsp honey, thrice a day.

Hiccups

Wild amla powder with long pepper [or, black pepper]. One gm amla, with 3-4 pinches of pepper.

Slow and burning urination

Juice of amla, half cup [approx 30 ml], twice a day. This should be supplemented with extra fluid intake and/or liquid diet.

Diabetes

Amla and turmeric, as juice or powder, twice a day, before food; use two tsp each for juice and half tsp each for powder.
Despite its supreme safety and therapeutic value, it is useful to consult an expert in ayurveda or herbal medicine to have a more specific and individualised prescription to suit your amla needs – especially when you have medical, or surgical, concerns.

Add Amla to Your Diet

Amla fruits are available at local fruit sellers. Amla is seasonally available from, October to January in India. You can buy fresh amla and make a murabba [sugar syrup preparation] with either whole fruits or grated amla. You could also make an amla pickle that is tangy and spicy. In case you prefer a drink, you can choose Amlana, which is a cool appetizer, or an amla-ginger punch.
Ready-to-eat packaged Amla also is available in a number of stores. Normally these are local brands. Options like dehydrated amla, amla in tablet form, packaged amla juice, amla pickles, amla chutney, amla candy are a good bet for trial.
You could even start off on Triphala or Chyawanprash both of which contain amla as a major ingredient.

चीज स्टिक सॉल्टी

सामग्री :
मैदा – 90 ग्राम
बटर – 50 ग्राम
चीज (ग्रेटेड) – 40 ग्राम
लाल मिर्च – 1 चम्मच
नमक – स्वादानुसार
पानी – 15 – 20 मिली

विधि : ग्रेटेड चीज और बटर को एक साथ मिलाइए। उसके बाद पानी भी डालिए और बीट करिए। इस बैटर में मिर्च पाउडर, मैदा और नमक धीरे-धीरे मिलाइए। कुकीज के आटे के जैसा गंथ लें, और इसे खस्ता बनाने के लिए मीठा सोडा भी मिलाएं। 14 एमएम मोटी रोटी बनाने लें, और फिर लंबी-लंबी स्टिक्स काट लें। 180 डिग्री पर इसे 12-15 मिनट के लिए बेक कर लीजिए। तैयार हैं चीज स्टिक सॉल्टी।

लाहौरी कोफ्ते

आवश्यक सामग्री
पनीर-150 ग्राम ,
उबले आलू- 2 नग,
मैदा-2-3 चम्मच,
गर्म मसाला-1/4 छोटा चम्मच ,
लाल मिर्च पाउडर-डेढ़ चम्मच ,
नमक-स्वादानुसार

भरावन के लिए ,
घी-2 बड़े चम्मच ,
प्याज-1/2 चम्मच ,
अदरक-आधा इंच ,
काजू- 4-5 नग ,
लाल मिर्च,
गर्म मसाला और नमक स्वादानुसार

बनाने की विधि
कोफ्ते बनाने के लिए कद्दूकस किया हुआ पनीर, आलू, लालमिर्च पाउडर, नमक, गर्म मसाला और 2 बड़े चम्मच मैदा को मिलाकर मिश्रण बनाएं। 12 गोलियां बना लीजिए। भरावन के लिए 2 छोटे चम्मच घी गर्म करें। प्याज और अदरक डालें। लाइट ब्राउन कलर आने तक उसे भूनें। काजू, नमक, गर्म मसाला और मिर्च पाउडर डाल कर मिलाएं। थोड़ी देर बाद आंच से उतार कर के ठंडा होने के लिए रख दें। अब पनीर के मिश्रण की प्रत्येक गोली को चपटा करें और उसमें तैयार भरावन को मिलाएं। प्रत्येक गोले को मैदे में रोल करें, रोल करने के बाद अतिरिक्त मैदे को झाड़ दीजिए। एक बार में 1-2 कोफ्ते को मध्यम गर्म तेल में डीप फ्राई करें। अलग रख लें। ग्रेवी बनाने के लिए केसर को 1 बड़े चम्मच गर्म पानी में भिगो दें। प्याज, अदरक और सूखी लाल मिर्च को बारीक पीस लें। 2 बड़े चम्मच घी को भारी पेंदे की कढ़ाई में गर्म करें और प्याज का पेस्ट डालें। तेज पत्ता और छोटी इलायची डालें। धीमी आंच पर 10- 15 मिनट तक पकाएं, जब तक प्याज हल्की भूरी हो जाए और घी अलग होने लगे, मसाले डालें- गर्म मसाले, लाल मिर्च पाउडर और नमक डालें, मलाई डालें, 3-4 मिनट तक पकाएं जब तक मसाला दोबारा भूरा हो जाए। काजू पाउडर डालें, आधे मिनट तक पकाएं

बालों की सेहत का ख्याल

हमारे शरीर की संरचना की शुरुआत बालों से होती है यह कहना गलत नहीं होगा। खोपड़ी जिसमें हमारा मस्तिष्क रहता है उसके ऊपर हमारे बाल ही तो होते हैं। महिलाओं और पुरुषों में समान रूप से सुंदर, घने और गहरे बाल उनकी अच्छी सेहत के परिचायक होते हैं। लेकिन अमूमन आज के टीन एजर्स और यूथ अपने फिगर को मेंटेन करने के चक्कर में अपनी लाइफ स्टाइल के साथ छेड़छाड़ करके अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करते हैं और नतीजा उनके बालों को भी भुगतना पड़ता है। बालों की कमी, असमय सफेदी, बालों का झड़ना सिर में रूसी होना संकेत हैं आपकी सेहत में गड़बड़ी और शारीर में आवश्यक प्रोटीन्स, खनिजों और विटामिन्स की कमियों के। शरीर में जरूरी तत्वों की कमी का नतीजा है बालों की खराब सेहत और जाने-अनजाने कभी-कभी हम ही इनके जिम्मेदार होते हैं।

हमारी गलती
वर्तमान में युवाओं की सबसे बड़ी समस्या है स्लिम और ट्रिम होने की चाहत, जिसे वे अपने सुंदर व्यक्तित्व से जोड़कर देखते हैं। यह बात सही है कि शरीर में अनावश्यक चर्बी भी अस्वस्थता की निशानी है, लेकिन जरा ही मोटापा आया नहीं और स्लिम होने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाने लगे। इसके लिए लड़के और उनसे ज्यादा लड़कियां अपनी डाइट के साथ अन्याय कर रहे हैं। भूखे रहकर शरीर को आवश्यक पोषण और खनिज तत्वों से वंचित रख रहे हैं। डाइटिंग, एक्सरसाइज के नाम पर अति कर रहे हैं नतीजतन जरूरी पोषक तत्व, विटामिन, खनिज और प्रोटीन्स जिनकी आपूर्ति अच्छे भोजन से होती है, वह उन्हें नहीं मिल रही और जीरो फिगर मेंटेनिंग के चक्कर में सिर के बाल भी झड़ रहे हैं। जबकि ज्ञात रहे शरीर को मिलने वाले सभी पोषक तत्वों का संबंध सेहतमंद और सुंदर बालों से भी है, लेकिन फिगर मेंटेन करने का जुनून बनता है बालों का दुश्मन।

एक्सपर्ट कहते हैं
मुंबई के ट्राइकोलॉजिस्ट डॉ. अपूर्व शाह का कहना है कि आजकल किशोरों और युवाओं में बाल झड़ने के मामले उन्हें ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। वे कहते हैं कि बालों की अच्छे से देखभाल न करना, पोषक आहार न लेना और अधिकतर तनाव में रहना भी अन्य परेशानियों के साथ-साथ इसका सबसे बड़ा कारण है। बालों को प्रोटीन्स की आवश्यकता होती है, जिसे वे पालक, काबुली चना, सोया, μलेक्स सीड्स, दूध आदि से प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन फास्ट-फूड और आयली-स्पाइसी चीजों के मोह ने उन्हें इन आवश्यक तत्वों से वंचित कर दिया है। यहां तक की पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना भी उनके बालों की खराब सेहत का नतीजा है।
हिदायत और सावधनी
विशेषज्ञों का कहना है कि एक दिन में 50 से 60 बालों का गिरना सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन इससे अधिक बालों का गिरना या अन्य परेशानियां खतरे का संकेत हैं। दूसरी ओर सिर्फ चिंतित होने से पहले आवश्यक है कि आपके बालों के साथ कोई समस्या है भी कि नहीं इसके लिए आप हेयर एनालिसिस करवा सकते हैं। इससे आपको बालों की कमजोरी या किसी अन्य परेशानी के बारे में पता भी चल सकता है। बालों को बांधकर सीधा करने की प्रक्रिया भी बालों की सेहत के लिहाज से खराब है। ब्यूटी पार्लर्स में तरह-तरह के शेप देने व बालों के साथ इस तरह के खिलवाड़ करने और करवाने वालों की भी कमी नहीं है। दूसरी ओर हिना या मेंहदी आपके बालों को नाजुक बनाती है, लेकिन नुकसान नहीं पहुंचाती। बालों में किसी प्रकार का ट्रीटमेंट करवाने के बाद खुजली होना, चकते पड़ना या फिर खोपड़ी की त्वचा में झुनझुनी आना भी गंभीर संकेत है।

यह भी रखें ख्याल
1. सप्ताह में तीन बार बालों में तेल लगाएं।
2. आठ घंटे की पर्याप्त नींद लें।
3. खाने में पर्याप्त पोषक भोजन लें।
कमजोर बालों को तौलिए से न रगड़े और हेयर ड्रायर का अधिकता से बालों में प्रयोग भी घातक है। आखिरी बात याद रखें बाल प्राय: प्रोटीन से बने होते हैं इसलिए डाइट में प्रोटीन की प्रचुरता अवश्य हो। सी फूड, सालमन में भी भरपूर पोषण है। मांसाहारी भोजन लेने वालों के लिए अंडा और चिकन सीमित मात्रा में लेना भी अच्छा होता है इसमे केरेटिन की प्रचुरता होती है, इसके अलावा लो फैट चीज, बींस, फल, सब्जियां, सूखे मेवे, हल्दी, हरी सब्जियां लेना बालों की सेहत के लिहाज से हितकर है।

चीजी गोभी रोल्स

सामग्री :
गोभी – 250 ग्राम
चिवड़ा – 50 ग्राम
चीज – 200 ग्राम कसा
हरी मिर्च – 4-5 कटी
हरा धनिया – 2 चम्मच कटा
ब्रेड स्लाइस – 2
आलू – 2
उबले दाल चीनी पाउडर – 1 चुटकी
प्याज – 1 बारिक कटा
नमक – स्वादानुसार
नींबू का रस –
थोड़ा सा तेल – तलने के लिए

विधि :
चिवडे को पानी में भिगोकर निचोड़ लें। ब्रेड स्लाइस को भी पानी में भिगोकर निचोड़ लें। अब सारी सामग्री को एक साथ मिलाकर रोल करें व लंबे रोल के कटलेट बना लें। गरम तेल में इन्हें तल लें। इन्हें सुनहरा तल लें। चटनी के साथ गरम गरम परोसें।

वायरल फीवर

हर मौसम में होने वाला वायरल फीवर,जो आसानी से अपनी चपेट में ले लेता है। क्यों ?
बुखार आपके शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता (लड़ने की क्षमता) और संक्रमण की तीव्रता का आनुपातिक संघर्ष है, जो ज्वर के रूप में सामने आता है। सही जाँच से ही  रोग के सही निदान में  सहायता मिलती है और चिकित्सक सही दवा दे सकते हैं।

ज्वर या बुखार से हम सभी भली-भाँति परिचित हैं और कभी न कभी इससे पीड़ित भी हुए हैं। बुखार शरीर में प्रवेश वाइरस से हुए संक्रमण का एक आम लक्षण है। साधारण संक्रमण कम से कम 2-3 दिनों में स्वतः या कुछ सामान्य औषधियों से ठीक कर देता है किसी रोगी को बार-बार बुखार आने पर चिकित्सक को बीमारी का सही इलाज करने के लिए कुछ जाँचें कराना ही पड़ती हैं। बुखार के सबसे अधिक होने वाले कारण हैं- मलेरिया, टायफाइड, गले थ्रोट इंफेक्शन, यूरिन इंफेक्शन, या वायरल फीवर आदि। असल में बुखार आपके शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता (लड़ने की क्षमता) और संक्रमण की तीव्रता का आनुपातिक संघर्ष  का नतीजा है, जो ज्वर के रूप में सामने आता है।

हमारे देश में कई मौसम आते-जाते हैं जैसे सर्दी, गर्मी और बरसात। जब एक मौसम से दूसरे मौसम में बदलाव होता है, तो इसके बीच का समय सबसे ज्यादा नुकसानदायक है। इसके पीछे कारण यह है कि हम इस बदलाव के लिए तैयार नहीं होते हैं या हम थोड़ी सी लापरवाही कर देते हैं, तो हमारे ऊपर बदलता मौसम असर कर जाता है और हम किसी न किसी तरह के बुखार के शिकार हो जाते हैं। जैसे सर्दी, जुकाम, वायरल फीवर) हो जाता है। मौसम के आते भी व जाते भी, ये वायरल  मेल कहलाता है, जो एक  दूसरे के साथ रहने से भी हो जाता है मतलब आपके सामने किसी ने छींका, खांसा या सांस भी ली, तो इसके कीटाणु हवा के जरिये दूसरे के नाक-मुंह से होकर शरीर के भीतर तक पहुंच जाते हैं।
और आप को भी वहीं जुकाम, खांसी, बुखार सरदर्द शुरू हो जाता है। इसका असर कई दिनों तक रहता है। वायरल फीवर का कोई खास डॉक्टरी  इलाज नहीं है,  इसके लिये हमें अपना ध्यान खुद ही रखना होगा। सबसे पहला काम, कभी खाली पेट घर से बाहर न निकलें। इसके पीछे कारण यह है कि खाली पेट, शरीर को कमजोर करता है। मौसम के हिसाब से कपड़े पहनें, मौसम के हिसाब से आहार लें, मौसमी फल सब्जियाँ जरूर खायें। अगर बाहर खायें तो सफाई का पूरा ध्यान रखें। बासी खाना, फल सब्जियां खाने की कोशिश न करें।
अगर आप को वायरल फीवर हो ही गया हो तो-

  • आप तुलसी के पत्ते तथा अदरक का इस्ताल करें। तुलसी की पत्तियों में कीटाणुओं को मारने की     जबरदस्त  क्षमता   होती है।
  • तुलसी की पत्तियाँ चबायें या फिर काढ़ा बनाकर पियें।
  • काढ़ा ऐसे बनायें– एक कप पानी में 8-10 तुलसी की पत्तियाँ, 8-10 दाने काली मिर्च के, थोड़ी अदरक कूचकर डाल दें। एक लौंग, थोड़ी दालचीनी, एक चुटकी सोंठ इन सबको एक ग्लास पानी में उबालें जब तक पानी आधा न रह जाय। फिर छान कर स्वादानुसार नमक चीनी मिलायें फिर पी जायें।(आजमाए  हुए नुस्खे)
  • जैसे ही आपको वायरल फीवर का असर महसूस हो इस काढ़े को बनाकर दिन में दो बार कम से कम पियें। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है। इसको पीने से बदन दर्द, सिर दर्द, खांसी व जुकाम में राहत मिलेगी और शरीर फुर्तीला होगा।
  • आप रात को सोते समय एक कप दूध में चुटकी भर हल्दी उबालकर उसमें चीनी डालकर पियें। हल्दी एंटीबायटिक होती है। वायरल के कीटाणुओं का नाश करने में मदद करती है।
  • सावधानी– उपर दिये  काढ़ा नुस्खे को पीकर खुली हवा में न घूमें।
  • केले में एक प्राकृतिक गुण यह भी होता है कि यह हमें मौसमी बीमारियों से भी बचाता है। मौसम बदलने के साथ होने वाली बीमारियों से बचने के लिए केले का इस्तेमाल करें।
  • सिविल अस्पताल के वरिष्ठ फिजिशियन डा. संजीव ग्रोवर ने बताया कि बदलते मौसम में खांसी, जुकाम, बुखार, गला खराब होने के साथ-साथ पेट खराब होने की शिकायत आती है। पेट खराब होने का प्रमुख कारण बाहर का उल्टा-सीधा खाना है। इससे पाचन तंत्र पर असर पड़ता है। यही नहीं गर्मी व सर्दी का एक साथ अनुभव भी होता है वायरल में ।
  • इन बातों का रखें ध्यान : बाहर निकलते समय ध्यान रखें। गर्मी से एक दम ठंडी जगह पर न जाएं। एसी व कूलर का परहेज करें। पंखे का इस्तेमाल करें। बाहर के खाने का परहेज करें। मच्छरों से भी बचाव के प्रबंध करें।
  • शुद्ध पानी की शुद्धता का  विशेष ध्यान रखें।
  • मौसमी बीमारी नही होती  केले में एक प्राकृतिक गुण यह भी होता है कि यह हमें मौसमी बीमारियों से भी बचाता है। मौसम बदलने के साथ होने वाली बीमारियों से बचने के लिए केले का इस्तेमाल करें।
    नीम- मौसम के बदलने से पहले से ही आप नीम की कोमल पत्तियों चबाना शुरू कर दें।रोग निरोधक शक्ति तथा इम्यून पावर बढ़ेगी।
    मौसम में अचानक परिवर्तन होने के कारण बच्चे वायरल फीवर से ग्रसित हो रहे हैं। बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण  इन बीमारियों के प्रति विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। मौसम में उतार चढ़ाव होने के कारण बच्चों को बुखार होने की अधिक संभावना रहती है। समय से उपचार व कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए
    बुखार होते ही माथे पर ठंडी पट्टी रखना चाहिए। बुखार होने पर हल्का खाना दें। बुखार उतार-चढ़ाव होने पर तरल पदार्थ खाने को दें। बाहर के खाने का परहेज करें तथा बुखार होने पर बिना चिकित्सक परामर्श के दवाई का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है
    जब तक बुखार कम न हो जाए खुले और शीतल कमरे में रहें
    शरीर में दर्द व ज्वर को कम करने के लिए क्रोसिन [पैरासीटामोल] का सेवन कर सकते हैं
    सादे पानी से स्पंज करें
    डिहाइड्रेशन की कमी पूरी करने के लिए अधिक तरल पदार्थ लें, जैसे पानी, सब्जियों व फलों का रस
    बिना तेल का हल्का भोजन करें
    कॉफी, चाय, भी कम  पिएं
    टीवी न देखें व ऎसा कोई काम न करें जिससे दिमाग पर जोर पड़े
  • मौसमी बीमारी नही होती – केले में एक प्राकृतिक गुण यह भी होता है कि यह हमें मौसमी बीमारियों से भी बचाता है। मौसम बदलने के साथ होने वाली बीमारियों से बचने के लिए केले का इस्तेमाल करें।
  • नीम- मौसम के बदलने से पहले से ही आप नीम की कोमल पत्तियों चबाना शुरू कर दें।रोग निरोधक शक्ति तथा इम्यून पावर बढ़ेगी।
  • मौसम में अचानक परिवर्तन होने के कारण बच्चे वायरल फीवर से ग्रसित हो रहे हैं। बच्चों में प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण  इन बीमारियों के प्रति विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। मौसम में उतार चढ़ाव होने के कारण बच्चों को बुखार होने की अधिक संभावना रहती है। समय से उपचार व कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए
  • बुखार होते ही माथे पर ठंडी पट्टी रखना चाहिए। बुखार होने पर हल्का खाना दें। बुखार उतार-चढ़ाव होने पर तरल पदार्थ खाने को दें। बाहर के खाने का परहेज करें तथा बुखार होने पर बिना चिकित्सक परामर्श के दवाई का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है
  • जब तक बुखार कम न हो जाए खुले और शीतल कमरे में रहें
  • शरीर में दर्द व ज्वर को कम करने के लिए क्रोसिन [पैरासीटामोल] का सेवन कर सकते हैं
  • सादे पानी से स्पंज करें
  • डिहाइड्रेशन की कमी पूरी करने के लिए अधिक तरल पदार्थ लें, जैसे पानी, सब्जियों व फलों का रस
  • बिना Iघी  तेल का हल्का भोजन करें
  • कॉफी, चाय, भी कम  पिएं
  • टीवी न देखें व ऎसा कोई काम न करें जिससे दिमाग पर जोर पड़े

रोटावायरस बच्चों में

शिशुओं से लेकर पांच साल तक के बच्चों में रोटावायरस यानि डायरिया का खतरा
रोटावायरस एक तरह का इनफेक्शन है  यह अतिसार यानि दस्त का बिगड़ा हुआ रूप होता है 
रोटावायरस जो ठंड में अधिकतर बच्चों में फैलता है। अगर    एक बच्चे को हो जाय तो उसके संपर्क में रहने से दूसरे बच्चे को भी हो सकता है। यह   विशेषकर गंदगी के कारण इंन्फेक्शन होता है इससे पीडित बच्चे का खिलौना भी यदि दूसरा बच्चा मुंह में डाले तो उसे भी हो सकता है ।इस इन्फेक्शन के होते ही बच्चे को दस्त तथा उल्टियां लग जाती है यह एक तरह का डायरिया(बिगडा दस्त) जैसा होता है जो आम डायरिया से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है इसकी वजह से बच्चों में डिहाईड्रेशन तक हो जाता है उल्टी व दस्त की वजह से।  वैसे तो पूरे साल इसका खतरा रहताहै परंतु ठंड में अधिक बढ जाता है ये बीमारी गोद के बच्चे से लेकर पांच साल तक के बच्चों में अधिक होता है। इसकारण गोद के बच्चों को उपर का दूध न दें। जहां तक संभव हो उन्हें स्तनपान ही करायें  लगभग एक या दो बार इस रोटावायरस की चपेट में हर बच्चा आ ही जाता है इसमें हालात बिगडने पर जान का खतरा भी हो सकता है।कुछ उपाय अपनाकर इस खतरे से कुछहद तकबच्चे को बचाया  जा सकता है ।

यह बच्चों की आम परेशानी होती है।
जब बच्चा चार-पांच माह का हो जाता है, तो वह मां के दूध के साथ-साथ ऊपर के दूध तथा अन्य आहार पर भी निर्भर रहता है। उसे ठोस आहार देना शुरू किया जा चुका होता है। केवल स्तनपान पर रहने वाले शिशु को तो आप कई रोगों से बचा सकते हैं, परंतु जैसे ही ऊपरी दूध या अन्य ठोस आहार देना शुरू करते हैं, तो बच्चों में पाचन संबंधी तथा अन्य परेशानियां पैदा होने लगती हैं।

बच्चों में रोटावायरस (अतिसार) के कारण-

  • •छोटे बच्चों की आंतें काफी नाजुक होती हैं। जरा भी आहार परिवर्तन किया गया, तो पाचन संस्थान पर उसका पूरा असर पड़ता है और उन्हें तकलीफ होने लगती हैं। बच्चों की पाचन शक्ति कमजोर होती है, इस कारण प्रारंभिक अवस्था में ऊपरी आहार ठीक से हजम नहीं कर पाता और उन्हें दस्त लग जाते हैं। इस कारण शुरू में 2-3 साल तक बच्चों की विशेष देखभाल करनी पड़ती है। अन्यथा बच्चे काफी कमजोर हो जाते हैं। अतिसार (पतले दस्त) यह पाचन संस्था का विकार है, जो पतले मल के रूप में बाहर आता है। इससे बच्चों को तुरंत डिहाइड्रेशन हो जाता है। अगर तुरंत उपचार मिले तो स्वास्थ्य लाभ हो जाता है
  • •ये परेशानियां गर्मी या बरसात तथा सर्दियों में भी अधिक होती हैं
  • •यदि बच्चा मां का दूध पीता है और मां गरिष्ठ भोजन लेती हो, तो बच्चों को अतिसार हो सकता है
  • •यदि माता दस्त से ग्रस्त हो, तो दूध पीने वाला बच्चा भी ग्रसित होगा
  • •बोतल से दूध पीने वाले बच्चों को अतिसार की संभावना अधिक हो सकती है इसका कारण बोतल की सफाई न होना होता है
  • •यदि ऊपर का दूध पचाने में बच्चा असमर्थ हो, तो अतिसार हो सकता है
  • •गर्मी में गर्मी के कारण बच्चा दूध हजम नहीं कर पाता हैजिससे अतिसार, दस्त हो सकता है
  • •दांत निकलते समय बच्चा मुंह में आसपास की चीजें डाल लेता है, तो बच्चे को इन्फेक्शन हो जाता है
  • •गंदे वातावरण में रहने वाले बच्चों में अतिसार की संभावना अधिक होती है
  • •यदि बच्चे को दस्त के साथ-साथ आंव, झागयुक्त, बदबूदार, पीला या हरा दस्त हो, तो बच्चे में पानी की अत्यधिक कमी हो जाती है। इसपर तुरंत ध्यान दें डॉक्टर से परामर्श लें और सिर्फ घरेलू इलाज में न पड़ें
  • •यदि अतिसार के साथ उल्टी भी हो
  • •साथ में बुखार भी हो
  • •बच्चा बिल्कुल सुस्त हो
  • •आंखें भीतर धंस गयी हों
  • •इसकी चिकित्सा में सबसे पहले तीन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  • •बच्चे के शरीर में डिहाइड्रेशन न होने पाये
  • •इस समय सही व उचित आहार दिया जाये
  • •दस्त होने के कारणों को दूर करना
  • •इस समय सबसे बड़ी समस्या होती है, डिहाइड्रेशन, इस समस्या का समाधान आप अवश्य कर सकते हैं। जैसे, जीवनरक्षक घोल, इसे बार-बार देना जरूरी है।

जीवनरक्षक घोल बनाने की विधि-

  • •एक गिलास पानी ले, जो उबाल कर ठंडा किया गया हो। इसमें एक चुटकी नमक, एक चम्मच चीनी,चार,पाँच बूंद नीबू मिलायें, इस घोल को अच्छी तरह मिला कर रखें। दिन में इसे बार-बार पिलाते रहें। साथ ही अन्य पेय पदार्थ अवश्य दें, जैसे- दही, छाछ, साबूदाना, दाल का पानी, नारियल पानी। साथ ही हल्का-फुल्का आहार अवश्य देते रहें।
  • •जैसे पतली खिचड़ी,दाल का पानी।
  • •डॉक्टर को अवश्य दिखायें, इसमें बिल्कुल देर न करें।

उपाय-

  • •इसकेलिये सबसे पहले जरूरी है साफसफाई, जब बच्चा गोद से उतरने लायक बड़ा हो जाता है तो वह हर चीज उठाकर मुंह में डाल लेता है सबसे पहला कारण डायरिया का यही होता है उस समय बच्चों के दांत निकल रहे होते है और उनके दांतो में चुनचुनाहट होती है जिसकी वजह से हर चीज मुंह मे डाल लेते हैं।बच्चों को फर यानि बाल वाले कोई भी खिलौने न दें कारण उसमें छिपे जीवाणु बच्चे के नाक तथा मुंह से शीघ्र उनके पेट में चले जाते हैं।बच्चे को सस्ते प्लास्टिक के खिलौने न दें कारण सेकेंड प्लास्टिक में गंदे कलर तथा खतरनाक केमिकल्स डाले जाते हैं। इससे अच्छा बिना रंग वाले लकड़ी के खिलौने दें।
  • •शिशुओं को केवल स्तनपान कराकर बचाया जा सकता हैकारण उपर का दूध यानि गाय,भैंस आदि बीमार हो आपको पता नहीं चलता आप उस दूध को बच्चे को जाने अंजाने पिला देते हैं या उनकी दूध की बोतल जरा भी गंदी रह गई हो तो इससे इन्फेक्शन जल्दी फैलता है बच्चों की हर चीजों की साफ सफाई पर विशेष ध्यान रखें।

स्वाइन फ्लू

स्वाइन फ्लू के वायरस को गर्म मौसम बढने नहीं देता जैसे जैसे मौसंम ठंडा होता है इसके वायरस बढते हैं. स्वाइन फ्लू क्या है-यह एक वायरल डिजीज है जो एच-1 एन-1 ए टाइप इनफ्लुएंजा वाइरस की वजह से होता है. हवा में सांस के जरिये इन्फेक्शन फैलता है .स्वाइन फ्लू छोटे बच्चों में भी हो सकता है यह बीमारी हर उम्र के लोगों पर अपना असर डालती है.इसमें फीवर के साथ जुकाम,आंखो से पानी बहना,बुखार आना तथा खाना पीना बंद होने लगता है मरीज सुस्त होने लगता है.छोटे बच्चे अधिक रोने लगते हैंइस तरह की कोई भी परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाये जांच के लिये.स्वाइन फ्लू से डरने से ज्यादा जरूरी है इसकी जानकारी रखना व सावधान रहना, अपना बचाव करना.

उन लोगों को अधिक सावधान रहना चाहिये जिन्हें-पहले से ही फेफडे, किडनी, दिल से जुडी बीमारी,या अस्थमा के मरीज हैंया फिर वो लोग जो पहले से ही किसी फ्लू टाईप के शुरूआती लक्षण से गुजर रहे हैं कारण इन लोगों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है तो इस तरह के वायरस अपना असर इन पर जल्दी दिखाते हैं.
बच्चों में स्वाइन फ्लू के लक्षण –यदि बच्चा जोर जोर से सांस ले रहा हो तो या सांस लेने में परेशानी महसूस कर रहा हो. बच्चा ठीक मात्रा में पानी नहीं पी रहा हो. त्वचा का रंग नीला पड़ रहा हो. बच्चा सुस्त पड़ता जा रहा हो गोद में लेने से अधिक रोता हो. त्वचा पर रैशेज नजर आ रहे हों तो तुरंत डॉक्टर के पास जायें.
बडों में एच-1,एन-1 स्वाइन फ्लू इनफ्लुएंजा के लक्षण-
सांस लेने में परेशानी,सीने में दर्द या दबाव महसूस होना,अचानक एच-1,एन-1 स्वाइन फ्लू सर दर्द उल्टियां या उबकाई आ रही हो तो तुरंत डॉक्टर के पास जायें.
एच-1,एन-1 स्वाइन फ्लू (वायरस) जानलेवा नहीं है मगर इम्यून सिस्टम कमजोर होने पर इसका असर हमारे पूरे श्वसन तंत्र को गहराई तक प्रभावित करती है.
यदि घर में कोई स्वाइन फ्लू का पेशेंट हो तो क्या करें—
इसके वायरस का असर कम से कम सात दिन तो रहता ही है इस कारण मरीज को घर के एक ऐसे कमरे में रखें जहाँ हवा अच्छी तरह आती जाती हो मरीज सिर्फ अपने कमरे में ही रहे बाहर न निकले जहां घर के बाकी सदस्य हों.मरीज अकेला ही सोये उस कमरे में यदि संभव न हो तो दूसरा सोने वाला व्यक्ति दूसरी तरफ मुंह करके सोये तथा मास्क पहनकर रहे यदि मास्क ,संभव न हो तो साफ कपडा मुंह पर बांध कर रखे.
*मरीज स्मोमिंग न करे
*दूसरों के संपर्क में न आयें
*डॉक्टर के संपर्क में रहें
मरीज के कमरे में पूरी तरह साफ सफाई रखें
स्वाइन फ्लू से डरे नहीं बस सावधानी बरतें तथा होने से पहले कुछ उपाय करें तथा होने के बाद ढंग से इलाज करें –

आयुर्वेदिक उपाय

इन उपायों में ,से कोई एक ही अपनाए—

  • चार ,छै तुलसी के पत्ते लें ,एक टुकडा अदरक ,एक चुटकी काली मिर्च पावडर तथा एकचुटकी हल्दी पावडर इन सब को पानी या चाय में डाल कर उबालकर दिन में कम से कम तीन बार पियें.
  • आधा चम्मचहल्दी को एक पाव दूध में उबालकर पियें
  • आधा चम्मच हल्दी एक बडा चम्मच शहद के साथ लें
  • डेढ ग्लास पानी में एक चम्मच सूखा धनिया ,एक छोटी इलायची उबालकर रख लें यही पानी छानकर दिनभर थोडा थोडा पियें ।
  • आधा कप पानी में आधा चम्मच आंवला पावडर डालकर दिन में तीन बार पियें इससे इम्यून पावर बढता है।
  • अगर आप इनमें से कोई उपाय नहीं कर सकते तो बाजार से जोशांदा का पैकेट लाकर तीन ग्लास पानी में एक पुडिया जोशांदा की डालकर उबालें जब पानी आधा रह जाय तो इसे थोडा थोडा कर के घर के सभी लोग पियें.जोशांदा में गुलबनफशा होता है ये एंटी एलर्जिक होता है।
  • करौंदा किसी भी रूप में अवश्य खायें
  • इन दिनों बाहर का खाने से बचें
  • मौसमी फल, सब्जियां, तथा सभी प्रकार की दालें खायें
  • तरल अधिक मात्रा में लें जैसे जूस,मठठा,नींबू पानी,सूप तथा पानी अधिक मात्रा में पियें

अल्जाइमर

अगर आप अपनों का नाम भूल जाएं या घर के अंदर एक से दूसरे कमरे में जाने का रास्ता भी आपको याद न रहे, तो इसे मामूली तौर पर न लें। चिकित्सकों का कहना है कि यह बीमारी याददाश्त में कमी न होकर अल्जाइमर हो सकती है, जिसके लिए किसी मनोचिकित्सक से संपर्क करना जरूरी है। अल्जाइमर का सटीक कारण अब तक पता नहीं चल सका है। शोध से पता चला है कि 45 वर्ष की उम्र के बाद ब्लैक टी पीने से अल्जाइमर की आशंका कम हो जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आकलन के मुताबिक दुनिया भर में लगभग एक करोड़ 80 लाख लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं। इस बीमारी से ग्रस्त मरीज पर सतत ध्यान देने की जरूरत है। दवाओं से ऐसे मरीजों को कुछ सहायता मिल सकती है, हालांकि इस बीमारी का उपचार अब तक उपलब्ध नहीं है। अगर आप यह भूल जाएं कि आपने नाश्ता किया या नहीं, आपको यह याद न आए कि फोन कैसे लगाना है, अपने घर की दूसरी मंजिल पर कैसे जाएं और अपने बच्चों या अपने साथी का नाम भूल जाएं, तो ये अल्जाइमर की बीमारी हो सकती है। इस बीमारी का पूरी तरह उपचार उपलब्ध नहीं है और इसलिए किसी को अगर लगे कि उसे खुद में इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो उसे या उसके परिवार को फौरन मनोचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि याददाश्त कम होना उतनी खतरनाक स्थिति नहीं है, जितना अल्जाइमर। अल्जाइमर दिमाग के तंतुओं का आपस में संपर्क कम होने से उपजने वाली स्थिति है। बहुत से लोग अल्जाइमर को भी याददाश्त कम होना मान लेते हैं, पर अल्जाइमर में व्यक्ति खुद को और संबंधियों को भी भूल सकता है। गौरतलब है कि ‘ब्लैक’ फिल्म में अमिताभ बच्चन ने एक ऐसे शिक्षक की भूमिका निभाई थी, जिसे बाद में अल्जाइमर हो जाता है और वह सबको भूल जाता है।

आप वजन कम करना चाहते हैं?

यदि आप वजन कम करना चाहते हैं तो एक समय भोजन स्किप कर दें उसकी जगह पर फल फ्रूट इत्यादि खायें पर बिल्कुल भूखे न रहें ये शरीर के लिये नुकसान दायक होगा। अचानक वजन कम करने से इसका असर दिल पर पड़ता है।

यदि आप वजन कम करना चाहते है तो तरीके से करें
-एक दिन के नाश्ते में कटौती करें
-दोपहर  के भोजन में रोटी कम करदें
-चावल न खायें
-आलू खाना कम कर दें
-घी, मख्खन तली चीजें खाना कम करदें
-मीठा यानी सफेद शक्कर खाना कम करें
-आइस्क्रीम तथा कोलड्रिंक कम करें
– यदि आप अचानक सब कुछ खाना बंद कर देंगे तो कमजोरी आ जायेगी त्वचा पर झुर्रियां आ जायेंगी चेहरे पर दाग धब्बे पड़ जायेंगे।वजन कम करने का तरीका भी सही होना चाहिये,किसी डाइटीशियन से संपर्क करें।
-एरोबिक या हल्कि फुल्कि एक्सरसारज करते रहें
-पिज्जा में लो फैट चीज का इस्तेमाल करें
-किसी भी पार्टी में खाने के बाद डेसर्ट(मीठा) लेने से बचें जिससे आपके शरीर में कम कैलोरी जायेगी तो मोटापा भी कम ही चढेगा।
-खाना खाने से पहले ढेर सारा सलाद या फ्रूट खायें इस तरह कैलोरी कम इनटेक करेंगें आप
-आप टी वी देखते हुए भी डंबल्स की मदद से कुछ व्यायाम कर सकते हैं यदि डंबल न हो तो उसकी जगह पर  पानी से भरी दो बॉटलें लेकर भी अपने मसल्स को सुडौल बना सकते हैं।
-खाना छोटी प्लेट में परोसों इससे आप कम इनटेक करेंगें।
-यदि आईस्क्रीम खाना चाहते हैं तो छोटा कप ही खरीदकर खायें इससे कैलोरी कम इनटेक होगी ।
-हर दिन हम दस प्रतिशत कैलरी भोजन को डाइजस्ट तथा अबजॉर्व करने में खर्च करते हैं इस कारण एक ही बार में ज्यादा से ज्यादा भोजन करलेने के बजाय दिन में कई बार थोडा थोडा खायें ताकि हमारी कैलोरी इन्हें हजम करने में खर्च भी होती रहे और शरीर पर मोटापा न चढने पाये।-अधिक कैलोरी खर्च करने के लिये अधिक ठंडा पानी  पियें कारण पिये गये पानी को रूम टम्प्रेचर पर लाने के लिये बॉडी को चालीस कैलरी खर्च करनी पडती
है।
-एरोबिक या हल्कि फुल्कि एक्सरसारज बराबर  करते रहें जो बहुत जरूरी है वरना डाइटिंग से आपके शरीर का शेप बिगड़ जायगा

एलर्जी

एलर्जी क्या है,कैसे होती है …..
व्यक्ति को वास्तव में किन-किन चीजों से एलर्जी होती है यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कारण हर व्यक्ति के साथ अलग अलग कारण हो सकते हैं इसके लिए विशेशज्ञ के पास जाना पड़ता है। एलर्जी के निदान में रोगी के बारे में छोटी-से-छोटी जानकारी बहुत महत्वपूर्ण होती है जो एलर्जी के संभावित कारणों का पता लगाती हैं।


यह पता लगा लेने के बाद कि व्यक्ति को किन-किन चीजों से एलर्जी है, उसका उपचार  किया जाता है। आम व्यक्तियों की यह धारणा है कि एलर्जी का कोई कारगर उपचार नहीं है। यह कुछ हद तक सही भी है। सर्वप्रथम तो आप यह जान लें कि एलर्जी का उपचार दवाइयों से पूर्णतः संभव नहीं है। दवाइयाँ एलर्जी में कुछ समय के लिए राहत देती हैं। दवाइयाँ एलर्जी के रिएक्शन को रोके रखती हैं परंतु दवाइयाँ बंद करने पर रोगी की परेशानियाँ फिर शुरू हो सकती हैं।


एलर्जी के उपचार में बचाव ही सबसे कारगर उपचार है बचाव के साथ-साथ कुछ विशेष तरह की एलर्जी जैसे धूल, पराग कण, फफूँद, धूल के जीवाणु आदि एलर्जी का टीकों द्वारा उपचार भी हो सकते हैं।

कई लोगों की त्वचा अत्यधिक सेंसेटिव होती है। किसी विशेष चीज के संपर्क में आने पर त्वचा पर एलर्जी उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में उन्हें उन चीजों से दूर रहने की जरूरत होती है। त्वचा रोग विशेषज्ञों का कहना है- कि विशेष चीज के संपर्क में आने के बाद त्वचा पर खुजलाहट, जलन, दाने, ददोरे, लाल हो जानाजैसे परफ्यूम आदि से किसी को ऊनी कपडे त्वचा पर रगडने से( तो सूती कपडे के ऊपर पहने) समस्या दिखाई दे तो समझना चाहिए उन चीजों से आपको एलर्जी है।

हमारे शरीर में एक प्रकार की एंटी बॉडीज तैयार होती रहती है जो बाहरी रोग आदि से बचाव करती है, जिनकी त्वचा अत्यधिक संवेदनशील होती है, उसके रक्त में एलर्जी संबंधी तत्व अधिक मात्रा में प्रवाहित होते हैं। त्वचा एलर्जिक तत्व के संपर्क में आते ही, उस स्थान पर शोथ, लाल होना या दाने निकल जाते हैं। एलर्जी वाले स्थान पर कभी कभी  किसी-किसी को कोई परेशानी नहीं होती, मगर कुछ लोगों को यह एलर्जी काफी परेशान करती है। एलर्जी वाले स्थान पर दर्द, खुजलाहट, जलन, छाले पड़ना, छाले फूटकर पानी निकलना,घाव हो जाना, घाव न सूखना आदि समस्याएँ दिखाई देती हैं। किसी भी चीज से बार-बार एलर्जी  होने पर आगे चलकर त्वचा रोग का रूप भी धारण कर सकती है । कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें प्लास्टिक की चीजों, जैसे नकली आभूषण, बिंदी, परफ्यूम, चश्मे के फ्रेम, खुशबूदार साबुन, चमड़े की वस्तु आदि से (एलर्जी) परेशानी हो जाती



आई फ्लू
कंजंक्टिवाइटिस को बोलचाल की भाषा में आई फ्लूआंख आना कहते हैं। इसकी वजह से आंखें लाल, सूजन युक्त, चिपचिपी [कीचड़युक्त] होने के साथ-साथ उसमें बाल जैसी चुभने की समस्याएं हो सकती हैं। आमतौर पर बैक्टीरिया या वायरस के इंफेक्शन अथवा एलर्जी के कारण यह तकलीफ होती है।
*बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस :दोनों आंखों से बहुत अधिक कीचड़ आना।
समाधानी — डॉक्टरी सलाह से एंटीबायोटिक ड्रॉप्स या ऑइंटमेंट का इस्तेमाल करें।
*वायरल कंजंक्टिवाइटिस: कीचड़युक्त पानी काम आना, एक आंख से पानी आना।
समाधानी — गुनगुने या फिर नमक मिले पानी अथवा बोरिक एसिड पाउडर से दिन में कई बार आंखों को धोएं। डॉक्टरी सलाह लें।
*एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस: दोनों आंखों से पानी आना, खुजली होना और लाली आना
समाधानी— वायरल कंजंक्टिवाइटिस में बताए उपायों पर अमल करें।
बैक्टीरियल और वायरल कंजंक्टिवाइटिस बहुत तेजी से फैलने वाला रोग है। यह परिवार और डॉक्टर की क्लिनिक में आए लोगों में बहुत तेजी से फैल सकता है। यदि आप या आपका बच्चा “आई इंफेक्शन” का शिकार हो गया है, तो परिवार के सभी सदस्य साफ सफाई पर खास तवज्जों दें। अच्छी तरह हाथ धोएं, रोगी के टॉवेल, रूमाल का इस्तेमाल न करें और तकिए का कवर रोजाना बदलें। धैर्य रखें, डॉक्टर के बताएं निर्देशों का पालन करें, कुछ दिनों में कंजंक्टि वाइटिस ठीक हो जाती है।
आई फ्लू की बीमारी आंखों से पानी निकलता है, आंखों में चुभन महसूस होती है।

बचाव के उपाय

  • आई फ्लू होने पर चश्मे का प्रयोग करें।
  • किसी व्यक्ति से हाथ नहीं मिलाना चाहिए।
  • आंखों को हाथ से नहीं रगड़ना चाहिए।
  • यदि बच्चों के आंख में हो गया हो, तो उसे स्कूल नहीं भेजना चाहिए।
  • आंखों को तीन-चार बार गुनगुने पानी से धोना चाहिए।
  • तीन-चार दिन रोगी को आराम करना चाहिए।
  • किसी दूसरे को तौलिया, रुमाल इस्तेमाल नहीं करना चाहिए


नाक की एलर्जी से बचने का घरेलू उपाय

धूल मिट्टी  के कारणनाक में एलर्जी हो जाती है बार –बार छींके आती रहती है या नाक से पानी गिरता रहता है बराबर  जुकाम  बना रहता है तो इसे एलर्जी कहते हैं।किसी किसी को धूल,धुएं या अन्य किसी चीज से एलर्जी होती है या नाक की हड्डी बढ़जाती है,या मांस बढ़ जाता हैयदि इस तरह की एलर्जी हो जाए तो मेथी की कोमल पत्तियां सलाद के रूप में खायें ,मेथी दाना रात में पानी में भिगाकर या बिना भिगाये भी  सुबह शाम पानी से निगलें काफी फायदा होगा।मेथी भिगाया पानी न पियें इससे कोई फायदा नहीं होता

सोंठ, काली मिर्च, छोटी पीकर और मिश्री सभी एक-एक बडा चम्मच लेकर चूर्ण  बना लें बीज निकाला हुआ दस मुनक्का 50 ग्राम, गोदंती हरताल भस्म 10 ग्राम तथा तुलसी के दस पत्ते सभी को मिलाकर  पीस लें औरछोटी- छोटी गोलियाँ बनाकर छाया में सुखा लें।

  • सुबह  शाम  गर्म पानी के साथदो दो गोली तीन माह तक सेवन करें। ठंडे पदार्थ, बर्फ, दही, ठंडे पेय से परहेज करें। नाक की एलर्जी दूर हो जाएगी।
  • खान-पीने की चीजों से एलर्जी होना एक आम बात है।
  • दूध-अंडे जैसी कई चीजे हैं जिन्हें लेते वक्त हम शायद कभी नहीं सोचते कि वो सही है या नहीं और क्या इनसे एलर्जी भी हो सकती है
  • अक्सर हम अच्छे से अच्छा भोजन करते हैं,  फिर भी बीमार पड़ जाते हैं। इसकी वजह है कि हमेशा संतुलित भोजन लेने के साथ –साथ  यह देखना भी जरूरी होता है कि आप जो खा रहे हैं वो आपके शरीर के लिए कितना सही है।  यह एक आम समस्या है खासकर बच्चों में।
  • बच्चों पर विशेष ध्यान दें जो भी उन्हें खाने को दें ।बच्चों को  खिलौनों (सॉफ्ट टॉयज) से एलर्जी  न हो जाए।
  • शिशु रोग विशेषज्ञों के अनुसार सस्ते रंगीन खिलौनों के पेंट में लेड मौजूद होता है। यह इतना अधिक खतरनाक होता है कि इसके मुंह में डालने से उनके ब्रेन और किडनी में परेशानी हो सकती है।
  • लेड के मुंह में जाने से बच्चा एनिमिक हो सकता हैं जिसके कारण बच्चा पीला पड़ने लगता है।
  • सॉफ्ट टॉयज(फर वाले खिलौने) में होने वाली धूल मिट्टी  बच्चे की नाक और आंख में जाने से बच्चों को आंख तथा नाक में एलर्जी हो सकती है।
  • गर्मियों के मौसम में हमें अपनी त्वचा के साथ साथ आंखों का भी पूरा ध्यान रखना चाहिये गर्मियों में आंखों में वायरल संक्रमण(आई फ्लू) होने का खतरा ज्यादा रहता है। कुछ छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर आप इन परेशानियों से बच सकते हैं।

चर्म रोग, स्किन एलर्जी
एलर्जी कई प्रकार की होती हैं। इस तरह के सभी रोग परेशान करने वाले होते हैं। इन रोगों का यदि ठीक समय   पर इलाज न किया गया, तो परेशानी बढ़ जाती है। त्वचा के कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो अधिक पसीना आने की जगह पर होते हैं दाद या खुजली। परंतु मुख्य रूप से दाद, खाज और कुष्ठ रोग मुख्य हैं। इनके पास दूसरे लोग बैठने से घबराते हैं। परंतु  इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। इन रोगों में ज्यादातर साफ सफाई रखने की जरूरत होती है। वरना ये खुद आपके ही शरीर पर जल्द से जल्द फैल सकते हैं। तथा आपके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें अगर दूसरे लोग इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें भी यह रोग लग सकता है। ये रोग रक्त की अशुद्धि से भी होता है। एक्जिमा, दाद, खुजली हो जाये तो उस स्थान का उपचार करें। ये रोग अधिकतर बरसात में होता है। जो बिगड़ जाने पर जल्दी ठीक नहीं होता है।

उपाचार –

  • फिटकरी के पानी से प्रभावित स्थान को धोकर साफ करें।

उसपर  कपूर सरसों का तेल लगाते रहें।

  • आंवले की गुली जलाकर राख कर लें उसमें एक चुटकी फिटकरी,
  • नारियल का तेल मिलाकर इसका पेस्ट उस स्थान पर लगाते
  • रहें।
  • एक विकार दूर करने के लिये खट्टी चीजें, चीबी, मिर्च, मसाले  से दूर रहें।
  • जब तक उपलब्ध हो गाजर का रस पियें दाद में।
  • विटामिन ए की कमी से त्वचा शुष्क होती है। ये शुष्कता सर्दियों में अधिक बढ़ जाती है। इस कारण सर्दियों में गाजर का रस पियें ये विटामिन ए का भरपूर स्त्रोत है।
  • चुकंदर के पत्तों का रस, नींबू का रस मिलाकर लगायें दाद ठीक होगा।
  • गाजर व खीरे का रस बराबर-बराबर लेकर चर्म रोग पर दिन में चार बार लगायें।
  • चर्म रोग कैसा भी हो उस स्थान को नींबू पानी से धोते रहें लाभ होगा। रोज सुबह नींबू पानी पियें लाभ होगा।
  • नींबू में फिटकरी भरकर पीड़ित स्थान पर रगड़े लाभ होगा।
  • चंदन का बूरा, नींबू का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पेष्ट बनाऐं व दाद, खुजली पर लगायें।
  • दाद होने पर नीला थोथा, फिटकरी दोनों को आग में भूनकर पीस लें फिर नींबू निचोड़कर लेप बनाऐं और दाद पर लगायें पुराना दाद भी ठीक हो जायेगा।
  • दाद पर जायफल, गंधक, सुहागा को नींबू के रस में रगड़कर लगाने से लाभ होगा।
  • दाद व खाज के रोगी, उबले नींबू का रस, शहद, अजवाइन के साथ रोज सुबह शाम पियें। दाद खाज में आराम होगा।
  • नींबू के रस में इमली का बीज पीसकर लगाने से दाद मिटता   है।
  • पिसा सुहागा नींबू का रस मिलाकर लेप बनाऐं तथा दाद को खुजला कर उस पर लेप करें।
  • दिन में चार बार दाद को खुजलाकर उस पर नींबू रगड़ें।
  • सूखें सिंघाड़े को नींबू के रस घिसें इसे दाद पर लगायें पहले तो थोड़ी जलन होगी फिर ठंडक पड़ जायेगी इससे दाद ठीक होगा।
  • तुलसी के पत्तों को नींबू के साथ पीसें यानी चटनी जैसा बना लें इसे 15 दिन तक लगातार लगायें। दाद ठीक होगा।
  • प्याज का बीज नींबू के रस के साथ पीस लें फिर रोज दाद पर करीब दो माह तक लगायें दाद ठीक होगा।
  • नहाते समय उस स्थान पर साबुन न लगायें। पानी में नींबू का रस डालकर  नहायें। दाद फैलने का डर नहीं रहेगा।
  • पत्ता गोभी, चने के आटे का सेवन करें। नीम का लेप लगायें। नीम का शर्बत पियें थोड़ी मात्रा में।
  • प्याज पानी में उबालकर प्रभावित स्थान पर लगायें। कैसा भी रोग होगा ठीक हो जायेगा। लंम्बे समय तक लगाये।
  • प्याज के बीज को पीसकर गोमूत्र में मिलाकर दाद वाले हिस्से पर लगायें। प्याज भी खायें।
  • बड़ी हरड़ को सिरके में घिसकर लगाने से दाद ठीक होगा। ठीक होने तक लगायें।
  • चर्म रोग कोई भी हो, शहद, सिरका मिलाकर चर्म रोग पर लगाये मलहम की तरह। कुष्ठ रोग में भी शहद खायें, शहद लगायें।
  • तुलसी का तेल बनाएं चर्म रोग के लिये– जड़ सहित तुलसी का हरा भरा पौधा लेकर धो लें, इसे पीसकर इसका रस निकालें। आधा कि. पानी- आ. कि तेल डालकर हल्की आंच पर पकाएं, जब तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर कर रख दें। तेल बन गया। इसे सफेद दाग पर लगाएं। इन सब इलाज के लिए धैर्य की जरूरत है। कारण ठीक होने में समय लगता है। सफेद दाग में नीम एक वरदान है। कुष्ठ रोग का इलाज नीम के जितने करीब होगा, उतना ही फायदा होगा। नीम लगाएं, नीम खाएं, नीम पर सोएं, नीम के नीचे बैठे, सोये यानि कुष्ठ रोग के व्यक्ति जितना संभव हो नीम के नजदीक रहें। नीम के पत्ते पर सोएं, उसकी कोमल पत्तियां, निबोली चबाते रहें। रक्त शुद्धिकरण होगा। अंदर से त्वचा ठीक होगी। कारण नीम अपने में खुद एक एंटीबायोटिक है। इसका वृक्ष अपने आसपास के वायुमंडल को शुद्ध, स्वच्छ, कीटाणुरहित रखता है। इसकी पत्तियां जलाकर पीसकर नीम के ही तेल में मिलाकर घाव पर लेप करें। नीम की फूल, पत्तियां, निबोली पीसकर इसका शर्बत चालीस दिन तक लगाताकर पियें। कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलेगी। नीम का गोंद, नीम के ही रस में पीसकर पिएं थोड़ी-थोड़ी मात्रा से शुरू करें इससे गलने वाला कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है

मोटापा बढ़ाना है?

  • बादाम की बारह  गुली रात में पानी में भिगो दें। प्रातः छिल्का उतार कर बारीक पीस लें। इसमें एक छटाक मक्खन और थोड़ी सी शक्कर मिलाकर ब्रेड या रोटी के साथ खाएं, ऊपर से एक पाव दूध पिएं। छह महीने लगातार करें,  शर्तिया मोटे हो जाएंगे।
  • दो मुट्ठी जौ पानी में भिगोएं घंटे बारह के लिए, फिर चारपाई पर कपड़ा फैलाकर कुछ देर उसे खुश्क(सूखने दें) होने दें। फिर इन्हें कूटकर छिलका निकाल दें। बची जौ की गुली से दूध में धीमी आंच पर पकाकर खीर बनाकर खाएं, कुछ सप्ताह में व्यक्ति मोटा हो सकता है।कम से कम तीन माह तक अवश्य।
  • जिस तरह से पानी में चने व चावल भिगोने से फूलता है, उसी तरह पतलापन होने पर पानी एवं पानी युक्त पदार्थ अधिक लेने से शरीर भी फूलता है।
  • रोज दो केले खाकर ऊपर से एक पाव गर्म दूध पीएं। नित्य तीन महीने तक आप अवश्य मोटे हो जाएंगे। आपके पेट में अधिक अफारा हो तो इसे न लें। यदि थोड़ा पेट भारी हो जाए तो छेटी इलायची खा लें पेट हल्का हो जाएगा।
  • नारियल व्यक्ति को मोटा करता है कच्चा नारियल का पानी पियें तथा कच्चा नारियल खायें
  • आलू डीप फ्राई करके खाने से वसा बढ़ता है तथा मोटापा बढ़ता है।
  • हरी मटर खाने से मांस बढ़ता है साथ ही रक्त भी बढ़ता है, इससे मोटापा बढ़ता है। हाई प्रोटीन का स्त्रोत है
  • घी और शक्कर मिलाकर खाने से मोटापा बढ़ता है
  • अनार रक्तवर्धक है। रक्त का संचार बढ़ाता शरीर मोटा करता है
  • थोड़ी मात्रा में मूंगफली रोज खाएं हाई प्रोटीन का स्त्रोत है
  • उड़द की दाल छिलका वाली खाएं, देह को मांसल करता है
  • शरीर की नियमित मालिश करें। शरीर मांसल होगा।
  • बादाम को रात में पानी में भिगो दें, सुबह महीन पीसकर दूध में डालकर उबालें फिर उसी  दूध को पी जाएं।

नकसीर – नाक से रक्त स्त्राव

बिना किसी संकेत के नाक से रक्त स्त्राव शुरू हो जाता है। नाक से खून बहने को नकसीर कहते हैं,यह विषेशकर गर्मियों के दिनों में होता है कई बार तो कुछ ज्यादा ही खून बहने लगता है।जिसे देखकर आदमी घबरा जाता है।

नकसीर के कई कारण हो सकते हैं……

  • नाक के भीतर ज्यादा अंगुली रखना जिससे नाक की भीतरी कोमल परत में चोट लग जाए तो खून बहने लगता है
  • उच्चरक्तचाप के मरीजों को भी नकसीर छूटता है
  • नाक के भीतर संक्रमण हो जाने से रक्तस्त्राव होता है
  • किसी की नाक में ट्यूमर होने सेभी  रक्तस्त्राव होता है
  • बाहर की हवा से नाक सूख जाती है वहां पपड़ी जम जाती है जिसे साफ करने पर भी रक्तस्त्राव होता है
  • समुद्री सतह से उंचाई वाले स्थान पर भी लोगों को नाक से रक्तस्त्राव होता है
  • विटामिन की कमी से मासिक धर्म में अनियमितता तथा धूप में अधिक काम करने से भी  नाक से रक्तस्त्राव होता है
  • खून पतला करने की दवा जैसे एस्प्रिन,हिपोरिन इत्यादि लेते रहने से भी रक्तस्त्राव होता है
  • कई बार नाक में खून का थक्का जमा हुआ दिखाई पड़ता है यदि इसे मामूली समझकर इसकी अवहेलना की गई तो यह गले से होकर पेट में चला जाता है और पेट की भीतही दीवार में सूजन पैदा कर देता है जिससे मरीज को खून की उल्टि भी हो सकती है।

उपचार…..

  • नाक से बहने वाले खून की अनदेखी न करें चाहे बच्चा हो या बडा
  • यदि अचानक नाक से रक्तस्त्राव होता है तो घबराये नहीं मरीज को शांत तथा ठंडे स्थान पर रखें
  • मरीज की नाक अंगूठे तथा तर्जनी अंगुली से पांच मिनट के लिये दबायें, मुंह से सांस लेने को कहें यदि रक्त मुंह में आ रहा है तो थूकने को कहें
  • मरीज को लिटा कर माथे तथा नाक पर बर्फ की पट्टी रखें इतनी देर मुंह से सांस लेने को कहें ,
  • यदि नकसीर अक्सर आती रहती हो तो,रात में किशमिश पानी में भिगा दें फिर सुबह खाये नकसीर ठीक हो जाता है
  • काली मिर्च, दही पुराने गुड़ में मिलाकर पिलाने से नकसीर ठीक हो जाता है
  • आंवले का मुरब्बा चांदी का वर्क लगा हो,उसे दस पंद्रह ग्राम रोज सुबह शाम खाने फायदा होता है
  • दस पंद्रह ग्राम गुलकंद सुबह शान रोज दूध या पानी से खायें
  • सौंफ का अर्क दस,पंद्रह ग्राम,उसमें बराबर का पानी मिलाकर भोजन के बाद कुछ दिनों तक लेते रहें फायदा अवश्य होगा
  • गर्मी के दिनों में ठंडा पेय पीते रहें जैसे शिकंजी ,लस्सी ,रूहआफजा,ठंडा पन्ना कच्चे आम का बाकी फलों का शर्बत।
  • लू लगने से भी नकसीर अक्सर आती है

मोटापा घटाना है?

  • मोटापे से कई बीमारियां जन्म लेती हैं जैसे हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर, इसी तरह महिलाओं में मोटापे से चलना मुश्किल हो जाता है। स्त्री हो या पुरुष, उनका वजन उनकी लंबाई के हिसाब से होना चाहिए जैसे 5 फिट लंबाई हो तो वजन 60 किलोग्राम कुछ कम या ज्यादा हो तो एडजस्ट किया जा सकता है।
  • बदन हल्का छरहरा होना चाहिए। इतना वजन हो कि इंसान खुद से अपना भार उठा  सके, जिंदगी का सुख ले सके, मोटापा से छुटकारा पाएं, दीर्घजीवी हों।
  • मोटापा शरीर में चर्बी बढ़ने से होता है, इसलिए चर्बीयुक्त तथा कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थ का सेवन ना करें।
  • हम अपने खाने-पीने का ध्यान ठीक से नहीं रखते, इसलिए मोटापा बिना पूछे बढ़ता रहता है। जैसे मांस, घी, चावल, तली चीजें, खाना खाने के बाद मीठा खाना, अधिक केले खाना, चिकनाई वाले पदार्थ खाना, खाना खाने के बाद तुरंत सो जाना, जरूरत के अनुसार श्रम ना करना, हमेशा जरूरत से ज्यादा खाना खाना, मासिक धर्म ना होना या गड़बड़ी होने से भी मोटापा बढ़ता है।
  • भूख सेकम खाएं, फल ज्यादा खाएं, हरी सब्जियां खाएं, भोजन के एक घंटे बाद पानी पिएं
  • गाजर का जूस रोज पिएं
  • अंकुरित अनाज खाएं, लो कैलोरी वाला भोजन लें
  • चिकनाई युक्त पदार्थ कम से कम खाएं। पुदीना वजन घटाता है, किसी भी रूप में लें
  • शरीर के (टॉक्सिक) विष को बाहर निकलने दें मल मूत्र पसीना आदि के द्वारा। कब्ज दूर करें। तरल पदार्थ अधिक लें, जूस, पानी, सूप।
  • गहरी सांस लें, नियमित हल्का-फुल्का व्यायाम करें
  • कैल्शियम की मात्रा भोजन में बढ़ाएं, कारण इसमें एक तरह का हार्मोन निकलता है जो मेटाबॉलिज्म और रक्तसंचार को संतुलित रखता है इससे कैलरीज जलती है और मोटापा घटता है।
  • हरी सब्जियां अधिक खाएं, नमक कम खाएं, टमाटर खाएं। कच्ची सब्जियां सलाद पर काला नमक, काली मिर्च, नींबू डालकर खाएं, सलाद का अधिक सेवन करें।
  • हफ्ते में एक बार उपवास करें जीवन सुखी बनाएं।

कान

कान के दो भाग होते हैं
बाहरी कान जो हमें दिखाई देता है और उसकी बनावट हमारे चेहरे के अनुसार होती है, साधारणतया कान की चमड़ी बाहर की तरफ बढ़ती है, और मैल आदि को बाहर फेंकती जाती है।

बाहरी कान में होने वाली परेशानियाँ
कान में चोट लगना
बाहर के कान में कट जाना, खून जम जाना या नली में फ्रेक्चर आदि। इससे कान में अत्यधिक दर्द होता है, क्योंकि यहाँ की चमड़ी कान के कॉर्टीलेज से चिपकी हुई होती है।

भीतरी कान का हिस्सा जो हमें दिखाई नहीं देता परंतु उसमें भी तमाम तरह की परेशानियां हो जाती हैं।
कान में कीड़ा,या किसी वस्तुओं का चले जाना या डाला जाना। कई बार बच्चे खेलते-खेलते छोटी-छोटी वस्तुओं को कान में डाल लेते हैं। उन्हें विशेष औजारों द्वारा निकाला जाता है। अगर वस्तु अधिक अंदर हो तो बच्चे को बेहोश कर दूरबीन द्वारा भी इसे निकाल सकते हैं। कई बार सीरिजिंग द्वारा भी निकाल सकते हैं। अगर कीड़ा, मच्छर, झिंगुर, कान में गया हो तो कान में कुछ बूँद तेल डालने से कीड़ा मर जाता है, क्योंकि उसे ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और फिर उसे आसानी से निकाला जा सकता है।

कान में संक्रमण
कान को किसी नुकीली चीज से खुजलाने से या कान छेदने  से कान में संक्रमण हो सकता है। कुछ वस्तुएँ जैसे क्रीम, इत्र कान में उपयोग में आने वाली दवाइयों की एलर्जी से भी संक्रमण होता है। कान लाल हो जाता है, खुजली आती है एवं दर्द हो सकता है।लोगों को इन चीजों का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है।
यूं तो कान से जुड़ी बीमारी का उम्र से कोई विशेष संबंध नहीं है, क्योंकि यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। फिर भी 50 वर्ष की उम्र से अधिक व्यक्तियों में कान से जुड़ी समस्याएं बड़े पैमाने पर देखने को मिलती हैं। इसलिए ठंड में बुजुर्गों को कान के प्रति ज्यादा सजग रहना चाहिए।

कान का दर्द 
ठंडी हवा या कान में मैल जमने से या फिर फुंसी होने से कान में दर्द हो तो अदरक का रस कपड़े से छानकर, गुनगुना कर तीन-चार बूंद कान में डालें दिन भर में तीन चार बार। यदि कान में सांय-सांय कर रहा हो तो थोड़ा-थोड़ा सोंठ, गुड़, घी मिलकर खाने से ठीक हो जायेगा।
-आम के पत्ते पीसकर उसका रस हल्का गर्म कर कान में तीन-चार बूंद डालें। दर्द     ठीक होगा।
-कान में कीडे-मकोड़ेका चले जानाअजवाइन के पत्तों के रस को कान में डालने से कान में चले गये कीडे-मकोड़े समाप्त हो जाते है।
-बहरापनअजवाइन के तेल को रोजाना कान में डालने से बहरापन दूर हो जाता है।
-कान को साउंड प्रदूषण से बचायें।
कान का बहना
मवाद जैसा या पानी कान से  बहना,  बहाव तीव्र या पुराना हो सकता है।
कान बहना  बच्चों, किशोरों , किशोरियों, कुपोषित बच्चों गंदी जगहों पर रहने वाले लोग  में आम हैं।
कारण:
सामान्‍य सर्दी-जुकाम के साथ इनफेक्श का होना।
लक्षण:
– एक या दोनों कानों में दर्द
-बदबूदार  बहाव
–  बुखार
सावधानियां:

  • कान में बिना मतलब  तेल न डालें
  • स्‍नान करते समय हमेशा दोनों कानों को बचाए या रूई लगायें
  • जब भी बहाव हो, कान साफ करने के लिये मेडिकेटेड इयर बड इस्तेमाल करें
  • ई.एन.टी चिकित्सक से उपचार के लिए उचित परामर्श लें

मोटापा

मोटापा तमाम बीमारियों को न्योता देता है।कुछ लोग मोटापे को अच्छीसेहत की निशानी मानकर चलते हैं लेकिन मोटापा एक    अभिशाप स्वरूप है जो शारीरिक स्वास्थ्य के लिये एक गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।और जब यही मांसल देह एक सीमा से आगे  निकल जाये तो मोटापे का कारण बन जाती है।

मोटापे का कारण
आधुनिक जीवन शैली,फास्ट फूड लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं उनमें उपस्थित अधिक मात्रा में  कार्बोहाइड्रेट तथा वसा शरीर का मोटापा बढा देता है।फास्टफूड की क्षेणी में आने वाला व्यंजन जिसमें कार्बोहाड्रेट,वसा तथा शर्करा अधिक मात्रा में होते है और रेशे (फाइबर )विटामिन तथा खनिज कम मत्रा में होते हैं इसमें-पिज्जा,बर्गर,पेटीज,पेसट्री,केक ,चाउमिन,चिप्स,चॉकलेट,कोल्ड्रिंक।इसमें कैलोरी अधिक तथा पोषक तत्व न के बराबर होते हैं जो बच्चों को थुलथुल बनाता है।इस तरह अत्याधिक भोजन करना तथा श्रम या व्यायाम बिल्कुल न करना मोटापे को बढावा देता है।

अत्याधिक मीठे का सेवन भी मोटापे को बढाने का एक विषेश कारण है।इसके अलावा थायरॉयड,मधुमेह में लेने वाली इंशुलिन,गर्भनिरोधक दवाएं भी मोटापे को बढाती है।गर्भावस्था तथा प्रसव के बाद के गरिष्ठ खानपान तथा विश्राम से मोटापा बढता है।

मानसिक तनाव भी पाचन तंत्र तथा हार्मोन के स्त्राव पर बुरा प्रभाव डालती है जिससे शरीर में वसा का जमाव बढता है।

मोटापे के कई रूप होते हैं
एक तरह का मोटापा, जिनकी तोंद बढ़ जाती है,(पेट)बाकी के हिस्से पर मोटापा नहीं होता ऐसे लोगों को पेट से संबंधित कई बीमारियां हो जाती हैजैसे भूख अधिक लगना,एसिडिटी होना यह मोटापे की शुरूआत है ।ऐसे में लोगों को पित्ताशय में पथरी बनने की शिकायत भी देखी जाती है।

दूसरी तरह का मोटापा,
जिसमें पेट की अपेक्षा जांघों  कथा नितंबों ,कूल्हों, पर चर्बी अधिक जमती है इस तरह का मोटापा ज्यादातर महिलाओं में अधिक देखने को मिलता है।ऐसे लोगों को गठिया, आर्थराइटिस का सामना करना पड़ सकता है।जब तक तोंद आवश्यकता से अधिक नहीं निकलती तब तक व्यक्ति को मोटापे का एहसास नहीं हो पाता।जिन महिलाओं के पेट अधिक निकलते हैं उन महिलाओं में एस्ट्रोजन के कारण वजन तेजी से बढ़ने लगता है।ऐसी महिलाओं में गर्भाशय का कैंसर का खतरा बढ़ता है।

तीसरे तरह का मोटापा, 
कुछ लोगों में मोटापे का असर उनके पूरे शरीर पर देखने को मिलता हैयानि उनका शरीर पूरा गोल मटोल होता है।उनके गाल भी चर्बी से भरे  लटकते रहते हैं।गर्दन पर चर्बी चढती है ।मोटापे के कारण कुछ महिलाओं के स्तन जरूरत से ज्यादा बढ़ जाते है जो लटकने लगते हैं देखने में बेढ़ंगे लगते हैं।
कुछ मोटापा आमतौर पर बचपन से ही शुरू हो जाता है क्योंकि ऐसे बच्चे शुरू से ही ज्यादा खाने के आदी बन जाते हैं।इनमें से वंशानुगत मोटापा लोगों को डायबिटीस, डिप्रेशन देती है।मानसिक तनाव से भरी जिंदगी गुजारते लोगों में डिप्रेशन के कारण एंड्रीनेलिन जैसे हार्मोन का उत्पादन अधिक मात्रा में होता है और उनकी भूख बढ़ जाती है जिससे वे बार-बार या ज्यादा खाने के शिकार बन जाते हैं जिसकी वजह से मोटापा बढ़ता है।

मोटापे से होने वाली परेशानियां
शरीर पर मोटापे का प्रभाव अलग अलग अंगों पर अलग अलग तरह से असर डालता है।मोटापे से पीडित लोगों के खून में ग्लूकोज के साथ-साथ बुरी माने जाने वाली चर्बी(bad cholesterol) का स्तर सामान्य से ज्यादा बना रहने लगता है इससे खून में ग्लूकोज और बैडकोलेस्ट्रॉल परस्पर संयुक्त होकर ऐसे  कणों में बदल जाते है जो उनकी रक्तवाहिनियों की अमदरूनी सतह पर परत के रूप ने जमने लगते है नतीजा रक्तवाहिनियां मोटी तथा संकरी होती जाती है और उनमें रक्त का प्रवाह धीमा पडने लगता है। रक्तवाहिनियां अपनी स्वाभाविक लचक खो देती हैं।ऐसा जब ह्रदय को रक्त पहुँचाने वाल धमनियों में होता है तो उसके कारण ह्रदय रोग की शुरूआत होने लगती है। ब्रिटेन के जानेमाने ह्रदय रोग विषेशज्ञ डॉक्टर रॉबिन्सन के अनुसार मोटापा उच्चरक्तचाप का प्रमुख कारण है।आगे चलकर मस्तिष्क से संबंधित खून की नलियों के फटने या खून के रिसाव के कारण लकवा मारने की संभावना भी बढ़ जाती है।

मोटापे तथा डायबिटीस, (मधुमेह) का आपस में चोली दामन का संबंध होता है। डायबिटीस के दौरान शरीर में ग्लूकोज का इस्तेमाल ठीक ढंग से नहीं हो पाता और ग्लूकोज चर्बी में बदलकर शरीर के अंदर जमा होने लग जाती है।विशेषज्ञ मोटापे को अधिकतर डायबिटीस के पूर्व संकेत के रूप में देखते है।

जोडों की बीमारी
मोटापा बढ़ने पर शरीर का सारा भार हमारे पैर यानि पंजों, टखनोंपर, कूल्हों के जोडों पर पडता है अधिक वजन ढोते रहने के कारण हड्डियां धीरे धीरे भुरभरी होने लगती हैजिससे उन जोडों में धीरे धीरे अस्थिक्षय (हड्डियों में कमजोरी तथा टूटफूट) आस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण पैदा होने लगते हैं। आस्टियोआर्थराइटिस में जोडों में ऐंठन युक्तसूजन ,दर्द बना रहता है जिससे लोगों में चलना फिरना दूभर हो जाता है।बोन फ्रेक्चर तक का खतरा बढ़ जाता है और हड्डियां जुडने में समय अधिक लगता है।

पीठ का दर्द, अधिक मोटे लोगों में शरीर का उपरी हिस्सा ज्यादा भारी होता है जिसकी वजह से कमर में झुकाव होने लगता है जिसके कारण मोटे लोगों में प्राय पीठ के निचले हिस्से में दर्द की शिकायत होने लगती है।

हार्निया, मोटेलोगों में हार्निया संबंधित शिकायत सामान्य लोगों के मुकाबले दो गुना ज्यादा होती है ।कारण मोटे लोगों मेंउनके स्नायु तंन्तु कमजोर पडने से ढीले  पडने लगते है जिससे वह न तो शरीर के आंतरिक अंगो को ठीक से सहारा दे पाते हैंऔर न ही उन्हें अपनी जगह पर स्थिर बनाये रख पाते हैं, जिसकी वजह से आंतरिक अंगों पर चढी परत जरा से झटके से टूटने लगती है जो हार्निया का कारण बनती है।

मोटापे का प्रजनन पर बुरा प्रभाव, मोटापे का लोगों के दाम्पत्य तथा सेक्स जीवन पर काफी प्रभाव पडता है।मोटापे से पीडित महिलाओं में मासिक अनियमितताएं देखने को मिलती है।मोटापे से बांझपन तथा प्रदर रोग की संभावनाएं बढ़ती हैं।मोटापा गर्भधारण में बाधक बनता है।गर्भावस्था में अनेक परेशानियां पैदा करता है ।कारण प्रसव के समय कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है ।अधय्यनों से पता चला है कि मोटी महिलाओं में पहले तो गर्भ धारण करने की संभावनाएं कम हो जाती हैं तथा गर्भपात का खतरा भी बना रहता है।ऐसी महिलाओं को गर्भधारण करते साथ ही डॉक्टरी परमर्श से चलना जरूरी हो जाता है।गर्भाशय का कैंसर होने का खतरा भी बना रहता है।

सांस तथा दमे की शिकायत की बीमारी,मोटापे के कारण  अक्सर लोगों में श्वास संबंधित तकलीफें बनी रहती है कारण है उनका ज्यादा वजन  उनकी छाती के पंजर की स्वतंत्र गतिविधियों में बाधा डालने लगता है।ह्रदय की कार्य क्षमता पर दबाव पडता है जिससे सांस लेने तथा छोडने में परेशानी महसूस होती है.सांस फूलती है फेफडों में रक्त का संचार धीमा पडने  लगता है.मोटे लोग जरा सा श्रम करने से या चलनें से सीढी चढने से हांफने लगते हैं मोटे लोगों  में ब्रेन सेट्रोक का खतरा भी सामान्य लोगों के मुकाबले ज्यादा होता है । मोटे लोगों के खून में कोलेस्टॉल का स्तर हमेशा ज्यादा ही रहने लगता है इससे उनके दमाग में खून की सप्लाई में रूकावट आने से दीमाग की धमनी फटने अर्थात ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है।


सर्दियों में मोटापा क्यों बढता है,उर्जा से भरपूर आहार मोटापा को बढाता है।सर्दियों में सामान्य आहार के अलावा अन्य उर्जा बढाने वासे वस्तुओं का भी सेवन करते हैं जैसे मूंगफल्ली,गजक,बादाम,काजू, पिस्ता, गरी ,गाजर का हल्वा,घी चुपडी मक्की तथा बाजरे की रोटी ये सारी वस्तुएं हमें अधिक उर्जा देती है जो हमारे शरीरर में वसा के रूप में जमा होकर शरीर का मोटापा बढा देती है सर्दी के कारण हम व्यायाम में भी कंजूसी करते हैं,दूसरा कारण सर्दियों में पानी कम पीते हैं जिसकी वजह से पाचनक्रिया ठीक ढंग से काम नहीं कर पाती है औशरीर से और अनावश्यक तत्वों का निष्काशन ठीक तरह से नहीं हो पाता ।


गर्मियोंमें मोटापा क्यों नहीं बढता,कारण हल्का भोजन ,भोजन के साथ सलाद या फिर भोजन की जगह सलाद भी ले लेते हैं।भोजन के बाद फालतू उर्जा वाली चीजें भी नहीं खाते।प्रति दिनपर्याप्त मात्रा में पानी भी पीते हैं साथ नींबू पानी(शिकंजी)भी लेते हैं।


अब बात करते हैं मोटापे को नियंत्रित रखने वाला आहार के बारे में- कम उर्जा वाले व्यंजनों का सेवन करना जैसे,भुने चने,मूंग दाल,दलिया, बिना घी की मक्की की रोटी खायें, उडद की दाल का सेवन कम करें कारण यह गरिष्ठ होती है।

कोल्डड्रिंक, आइस्क्रीम, पेस्ट्री, पेटीज यानि जंक फूड का इस्तेमाल कम करें ।लंच या डिनर में संतुलित आहार लें जिसमें कार्बोहाइड्रेट तथा प्रोटीन कम मात्रा में हो ताकि आसानी से पच सके साथ भूख मिटने का एहसास भी हो।


अंकुरित अनाज दालें सुबह नाश्ते में लें जिससे भरपूर मात्रा में विटामिन तथा खनिज प्राप्त होता रहे।यदि मांसाहार हैं तो भुना(rosted) हुआ मांस खायें जिसमें घी तेल कम मात्रा में हो।अधिक चिकनाई युक्त दूध ,दही तथा इससे बना पनीर या पनीर की रोटी या परांठे न खायें।इसके लिये टोफू (Tofu) खा सकते हैं यह सोया मिल्क से बनता है सोया मोटापा कम करने में सहायक है।

मौसमी हरी साग सब्जियों का सेवन करें जैसे,मेथी, पालक, बथुआ, चौलाईसाग जिनमें कैल्शियम अधिक पाया जाता है।मूली,गाजर, टमाटर कच्चा यानि सलाद के रूप में खायें या इसकी रोटी भी खा सकते हैं।इन सब्जियों के रस का सेवन भी कर सकते हैं घर ही में जूस निकाल कर पियें।गाजर में बेटाकैरोटिन अधिक मात्रा में पाया जाता है जो हमारी आंखों केलिये लाभदायक है साथ मोटापा कम करता है। टमाटर में लाईकोपिन होता है ये दोनों ही तत्व अनाक्सीकारक पदार्थ हैं जो फ्री रेडिकल्स से हमारी रक्षा करते हैं।

नींबू का रस गुनगुने पानी में निचोडकर पियें इससे पानी पीने की तासीर बढती है तथा भोजन ठीक तरह से पचकर  निष्काशन क्रिया ठीक ढंग से होती है। शरीर हल्का रहता है।सर्दियों में चाय नींबू वाली पियें तो गैस नहीं बनती है।दूध वाली चाय पीने से भूख तथा प्यास दोनों मर जाती है पता भी नहीं चलता।सर्दियों में हर चाय के थोडी देर बाद पानी अवश्य पियें।

व्यायाम कई समस्याओं का हल है, ठंड के दिनों में हम ठंड की वजह से व्यायाम नहीं करते हैं या व्यायाम करने में कंजूसी करते है टहलने से जी चुराते हैं बिस्तर पर पडे रहते हैं जो सेहत के लिये काफी नुकसान देय है।जबकि शरीर को व्यायाम की जरूरत गर्मियों से ज्यादा सर्दियों में अधिक होती हैकारण जाडे में रक्त कुछ गाढा सा हो जाता है जिससे रक्त संचारण की गति धीमी पड़ जाती है व्यायाम करने से रक्त द्रवित हो जाता है संचारण गति तेज हो जाती है।जिससे गरिष्ठ भोजन द्वारा प्राप्त फालतू कैलोरीज की खपत हो जाती हैशरीर में चर्बी नहीं जमने पाती मोटापा बढ़ने नहीं पाता।


शुद्ध हवा तथा धूप का सेवन  भी करें हवा , ठंड में भी कमरे में खुली तथा शुद्ध हवा आने के स्त्रोतों को पूरी तरह बंद न करें ।सीधी हवा न लें परंतु शुद्ध हवा शयन कक्ष में अवश्य आनी जरूरी है कारण शुद्ध हवा में ऑक्सीजन के रहने से फेफडों में रक्तशुधिकरण सुचारू रूप से होता है तथा चयापचन की गति धीमी नहीं पडती हम बराबर फुर्तीले बने रहते हैं। हाल ही में शोधों से पता है कि पर्याप्त मात्रा में धूप न मिल पाने से डिप्रेशन बढता है ,मनुष्य गुमसुम सा रहता है फुर्तीलापन नहीं हो पाता है ।पाचनक्रिया की दर में गिरावट आती है आहार से प्राप्त उर्जा की खपत (कैलोरी बर्न) नहीं हो पाती है जिससे शरीर में वसा का जमाव बढ दाता है और मोटापा बढने लगता है।
मोटापा कम करने के कुछ कारगर उपाय,
सोयाबीन मोटापा घटाता है,
सोयाबीन पर किये गये शोध से पता चला है कि सोयाबीन में प्रचुर मात्रा मे प्रोटीन उपलब्ध होता है इसमें पाया जाने वाला आइसोफ्लेवंस नामक प्रोटीन शरीर में जमी चर्बी के भंडार को कम करके मांसपेशियों को मजबूती देता है तथा चर्बी के भंडारण को कम करके मांसपेशियों को मजबूती देता है चर्बी वाली कोशिकाओं की वृद्धि रोकने में अहम भूमिका निभाता है।सोयाबीन महिलाओं में मीनोपॉज के दौरान चर्बी हीन उत्तकों के क्षय को भी रोकता है। सोयाबीन के इन्हीं गुणों के कारण मोटापे के शिकार लोगों के लिये सोयाबीन एक रामबाण दवा के समान सिद्ध माना गया है।तो सोयाबीन को अपने आहार में अवश्य शामिल करें।

नींबू, एक ग्लास पानी में एक नींबू निंचोडकर रोज सुबह बासी मुंह पियें यदि सर्दियों में मोटापा कुछ बढ़ गया हो तो गर्मी भर दो मास नींबू पानी पियें इससे आंतरिक चर्बी घट जायेगी।

शहद,शहद मोटापा कम करके शरीर को छरहरा बनाता है मोटापे में शक्कर की जगह शहद इस्तेमाल करें यदि डायबिटीस न हो तो।दो चम्मच शहद एक ग्लास पानी में डालकर एक बडा चम्मच नींबू का रस गुनगुने पानी में डालकर सूबह शाम रोजाना पियें तथा खानपान पर भी ध्यान रखें मोटापा कम अवश्य होगा ।
दही, दही खाने से शरीर की फालतू चर्बी घटती है।यदि मोटापा आ भी गया हो तो  रोज दही खायें तथा मट्ठा पियें दिन में दो तीन बार।

मूली ,दो बड़ा चम्मच मूली का रस में शहद मिलाकर बराबर मात्रा में पानी के साथ सेवन करें डेढ़ माह तक। मोटापा अवश्य कम होगा।

व्यायाम, नियमित रूप से व्यायाम किया जाये ,जैसे साइकलिंग,जॉगिंग,सीढ़ी चढ़ना उतरना,रस्सी कूदना,टहलना घूमना, इस तरह के व्यायाम करते रहने से वजन घटाया जा सकता है। इसके साथ साथ उपर बताए गये तरीके से खानपान के अनुसार चलें तो स्वस्थ एंव छरहरे बने रह सकते हैं।

बच्चों के कान का दर्द

कारण

  • बच्चों के कान में दर्द होने के कई  कारण  हो सकते  हैं
  • मौसम के हिसाब से देखा जाय तो कई  बार ठंड की वजह से भी  बच्चों के कान में दर्द होता है.
  • नहाते समय कान में पानी चला जाता है इससे भी दर्द होता है
  • कभी कभी बच्चे अपने कान में कोई चीज उठा कर डाल लेते हैं   इससे भी दर्द होजाता है
  • .कई बार बिना किसी कारण भी कान मे दर्द हो जाता है
  • कोई भी उपाय खुद न आजमाए  पहले डाक्टर से परामर्श लें

कान दर्द का निवारण

  1. बच्चों के कान में जब भी दर्द हो उन्हे खाने  पीने के लिये कोई भी ठंडी चीज न दें ,पानी भी गुनगुना पीने  को दें
  2. ठंडी हवा में कान मे टोपी लगाये
  3. बच्चों के कान में दर्द हो तो बच्चो को झूले में डालकर जोर जोर से न हिलायें
  4. नहलाते समय ध्यान रखें कि बच्चे के कान में पानी न जाय
  5. छोटे बच्चों को ध्वनि प्रदूषण से दूर रखें
  6. बच्चों के कान में तेल डालकर साफ करने की कोशिश नकरें
  7. शिशु को हमेशा बैठकर ही दूध पिलायें कारण कई बार कान में दूध जाने से एंव मैल होनेसे ,दोनों के मिलने से कान में इनफेक्शन होताहै ।
  8. शिशु को कान में दर्द हो तो माता के दूध की दो तीनबूद कान में टपकाए सिर्फ दूध से इन्फेक्शन नहीं होता बल्कि माता का दूध तो बच्चे के लिये कई बीमारियों  की दवा का काम करता है.

यदि आपके शरीर का वजन अधिक है, तो

से पोषक तत्व लें जिसमें ऊर्जा अधिक न हो। भोजन करते समय तीन बातों का ध्यान रखें-

    * ऐसा भोजन हो जिससे प्राप्त ऊर्जा शक्ति अधिक न हो।
    * पर्याप्त पोषक तत्व हो।
    * चिकनाई की मात्रा कम हो।

जैसे दूध से बने पदार्थ, आइस्क्रीम या कोल्ड ड्रिंक अधिक नहीं लेना चाहिये।    जैसे शराब शरीर के लिये हानिकारक है इससे प्राप्त ऊर्जा हमारे किसी काम नहीं आती परंतु व्यायाम नियमित करें क्योंकि व्यायाम करने से ऊर्जा खर्च होती हैं। भूख खुलकर लगती है आप ऐसे फल खायें, जो पेट तो भर जाये पर ऊर्जा कम दें। फल और सब्जियों से ऊर्जा कम मिलती है लकिन विटामिन व खनिज अधिक मात्रा में मिलता

इस    तरह   लीजिए  डाइट….
दिन की शुरुआत कभी भी कॉफी या चाय के साथ न करें। कैफीन वालीचीजें बीपी व हार्ट रेट बढ़ाती हैं। इससे शरीर में तनाव महसूस होता है ,जोकि पाचन तंत्र का सबसे बड़ा दुश्मन है। हम चाय या कॉफी पीकर नींदखुलने जैसा महसूस करते हैं , उसकी असली वजह हार्ट व ब्रिदिंग रेट काबढ़ना होता है। सुबह के वक्त बॉडी रिलैक्स होती है और हार्ट व ब्रिदिंग रेटसबसे कम होता है। इस रिलैक्स को बनाए रखने के लिए वास्तविक खाने कीजरूरत होती है। चाय कॉफी से पिछले  कई घंटे से भूखे सेल्स को जीरोन्यूट्रिशन मिलता है। इससे भूख मरती है और आप लंबे वक्त कर बिना महसूसकिए भूखे रहते हैं। सूरज निकलने के साथ मेटाबॉलिज्म पीक पर होता है।ऐसे में इस वक्त सबसे ज्यादा खाने की जरूरत होती है। अगर आप कुछ ठोसनहीं खाना चाहते तो फल खा सकते हैं। इसके एक घंटे बाद फाइबर युक्तचीजें खाएं , जैसे रोटी – सब्जी , उपमा , इडली , पोहा आदि लेना चाहिए।एक बार सेल्स को न्यूट्रिशन मिल जाए तो आप चाय – कॉफी ले सकते हैं।

– हर दो घंटे में खाएं। 
इससे आप मोटे नहीं होंगे , बल्कि खाने की मात्रा कमहोगी। ऐसे में एक वक्त में आप कम कैलरी लेंगे। ये कैलरी बेहतर तरीके सेइस्तेमाल होंगी और शरीर में जमा नहीं होंगी। थोड़े – थोड़े अंतराल पर खानेसे बॉडी को बेहतर महसूस होता है।

ज्यादा ऐक्टिव हों तो ज्यादा खाएं और कम एक्टिव हों तो कम।
अगर खुदको भूखे रखना सजा है तो ज्यादा खाना अपराध। बिना यह ध्यान दिए किहमारे पेट को क्या जरूरत है , हम खाते जाते हैं। हम मोटे इसलिए होते हैं ,क्योंकि हम सही वक्त पर खाने के बजाय गलत वक्त पर खाते हैं। उदाहरण केलिए लड्डू में काफी कैलरी होती है और अगर लड्डू खाने के साथ या रात मेंखाएं तो उन्हें कैलरी के रूप में शरीर में जमा होने से कोई नहीं रोक सकता।भरे पेट ( खाने के बाद ) और मेटाबॉलिक रेट कम होने के बाद ( सूर्यास्त केबाद ) शरीर पोषक न्यूट्रिएंट लेना बंद कर देता है। एक अच्छी औरतनावरहित नींद भी फैट कम करने में मदद करती है। सही तरीका यह है किरात में 6: 30 बजे तक पूरा खाना और 8: 30 बजे तक हल्का खाना खा लें।स्ट्रेस टाइम , बीमारी और ट्रैवल के वक्त ज्यादा कैलरी की जरूरत होती है।

अपने वजन को बढ़ने से रोकने की सबसे बेहतर उम्र होती है 18 से 25साल। इस दौरान वजन मेंटेन किया तो आगे आसानी से नहीं बढ़ता।

बटर मफिन्स

सामग्री :
मैदा – 125 ग्राम
शकर – 125 ग्राम
व्हाइट बटर – 125 ग्राम
अंडे – 3 नग
किशमिश (फिलिंग) – 20-25 नग
वनीला एसेंस – 3-4 ड्रॉप्स
यलो कलर – 2 ड्रॉप्स
बेकिंग पाउडर – आधा चम्मच

विधि
बटर और शकर को एक बर्तन में फेंटेंगे। बटर और शकर को बीट करते हुए एक-एक करके अंडा भी डालेंगे, पर ध्यान रखें के एक साथ सभी अंडों को ना मिलाएं। उसके बाद मिश्रण में एसेंस, यलो कलर, बैकिंग सोडा और किशमिश मिला लीजिए। अब इसके बाद मैदा भी इस बैटर में डालकर बीट करें। बैटर तैयार होने के बाद मफिन के मोल्ड को ग्रीस कर के उसमें बटर पेपर लगाएंगे। अब तैयार बैटर को मोल्ड में भरेंगे। ओवन को 220 डिग्री पर गर्म करके, मफिन को 15 से बीस मिनट के लिए बैक करें। 15 मिनट बाद टूथ पिक को मफिन में डालिए और निकालें, अगर मफिन कच्चा होगा तो टूथ पिक पर चिपक जाएगा।

वेडिंग सीजन में रेट्रो लुक

फैशन ट्रेंड्स लौटकर जरूर आते हैं। इसके पीछे काफी हद तक बॉलीवुड का हाथ रहता है, क्योंकि भारत में फिल्म स्टार्स ही ट्रेंड सेटर्स होते हैं। पिछले कुछ दिनों में आर्इं फिल्म्स ‘वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई’ और ‘एक्शन रीप्ले’ ने रेट्रो लुक फैशन को और भी हवा दे दी है। केवल रेट्रो स्टाइल की ड्रेसेज़ ही नहीं, बल्कि फैब्रिक और एक्सेसरीज भी उसी स्टाइल की पसंद की जाने लगी हैं। देखा जाए तो पिछले कुछ समय से ही यह फैशन दस्तक दे चुका था, लेकिन अब यह पूरी तरह शबाब पर है। फेस्टिव सीजन का मूड अभी भी कायम है और अब वेडिंग सीजन भी शुरू होने वाला है। इस पूरे दौर में रेट्रो लुक ही छाया रहेगा। फेस्टिव सीजन में फैशन कमोबेश एक जैसा ही रहता है, लेकिन कुछ फंडे चेंज हो जाते हैं। इनमें यदि अपडेट न रहा जाए, तो फैशन डिजास्टर हो सकता है। इसलिए कुछ बातों का ख्याल रखना जरूरी है।

सिल्क फेब्रिक के साथ पोल्का डॉट
 कुछ साल पहले पुराने दौर के फैशन के कुछ फॉर्मूले तो नजर आ गए हैं। इसी लहर में पोल्का डॉट का फैशन एक बार फिर नजर आने लगा है। अगर फैशन में इन रहना है तो इस सीजन में पोल्का डॉट वाले सिल्क फैब्रिक की ड्रेस बनवाएं। सिल्क फैब्रिक की कुर्तियों के साथ चूड़ीदार अच्छा लगता है। लड़के भी ट्रेंडी दिखने के लिए वेडिंग सीजन में सिल्क का कुर्ता या शर्ट बनवाएंगे तो अच्छे लगेंगे। यह डॉट्स ड्रेस मटेरियल के अलावा साड़ीज में भी छाया हुआ है।
बदला दुपट्टा स्टाइल-
  दुपट्टे को भी 70 के दशक की तरह गले में डालने की जगह सिर पर लेंगी तो अच्छा इफेक्ट आएगा। वैसे भी वेडिंग सीजन में सिर पर दुपट्टा ट्रेंडी के साथ-साथ शालीन लुक देता है। वहीं साड़ियों के साथ भी स्टोल स्टाइल का दुपट्टा आने लगा है। इसे चाहें तो अलग से सिर पर ओढ़ सकते हैं या फिर साइड में लटका सकते हैं। साड़ी के फैब्रिक और वर्क से मैचिंग होने के कारण यह साड़ी का एक्सटेंशन ही नजर आता है और खूबसूरत ही दिखता है।
एक्सेसरीज भी रेट्रो
रेट्रो फैशन का सबसे बड़ा सिंबल है, बिग साइज। बैग हो या सनग्लासेज या फिर ज्वेलरी, सभी बड़े और फंकी स्टाइल के होते हैं। वहीं बेल हैंड्स भी बड़े होने के कारण अपनी पहचान बनाते हैं। तो बस अब देर किस बात की। कुछ चीजें तो आपके पास होंगी हीं, बस उन्हें थोड़ा स्टाइल से वियर कीजिए और रेट्रो लुक का पूरा आनंद उठाइए।

ओवरईटिंग का जिम्मेदार कौन है?

अक्सर लोगों को ये आदत परेशान करती हैकि पेट भरने के बाद भी और खाने का मन क्यों करता हैं लोग और खाने के बाद परेशान भी होतेहैं। हमारे अंदर हंगर हार्मोन्सग्रेलिन हमारे ब्रेन को और या ज्यादा खाने का संदेश देता है यानि प्रोत्साहित करता है इसी ग्रेलिन की वजह से हम ओवरईटिंग करते हैं।

डॉक्टर जेफ्री जिगमैन कहते हैं पेट भर जाने के बाद भी हम स्वादिष्ट खाने को और खाना चाहते हैं कारण हमारा दिमाग हंमें ऐसा इंस्ट्रक्शन देता है यहां तक कि अल्कोहल तथा कोकीन लेने वाले  को नशे की स्थिति में भी ग्रेलिन हॉर्मोन लेवल को  बढ़ा देती है और उनकी भूख बढ़ जाती है ग्रेलिन नशे की स्थिति मेंभी चीजों को पहचानने की क्षमता रखता है ।

डॉ.जिगमैन का कहना है ओरईटिंग के लिये ग्रेलिन  ही जिम्मेदार होता है कहते है ग्रेलिन हमारे दिल दिमाग को खुशी का एहसास करवाता है और ओवरईटिंग करवाकर आनंद देता है ।औरयही कारण है कि हम स्वादिष्ट भोजन जितना ज्यादा करते हैं हमें उतना ही ज्यादा आनंद आता है

दूषित जल से होने वाली बिमारियां

पीलिया –दूषित जल पीने  से यह रोग किसी को भी हो सकता है चाहे बच्चा हो या बड़ा।इस रोग में आंख,चेहरा,त्वचा,नाखून सब हल्दी की तरह पीला दिखने लगता है। दूषित जल पीना तो दूर की बात है नहाने से भी कई तरह की  बिमारियां जैसे पीलिया या त्वचा रोग हो सकता है।खुजली,दाद,आंखों की बीमारियां,हैजा इत्यादि।पीलिया के लक्षण पीलिया होने से पहले भूख खत्म होने लगती है,सर दर्द तथा कमजोरी महसूस होने लगती है।


पेचिश-दूषित जल पीने से या नहाने से पाचन शक्ति कमजोर होने लगती है पेट में ऐंठन होने लगती है जिससे दस्त लग जाते हैं फलस्वरूप डायरिया यानि दस्त का भयंकर रूप जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती हैऔर ग्लूकोज (सिलाइन) लगाने की जरूरत पड़ सकती है।


नेत्र रोग – दूषित जल पीने से या नहाने से भी आंखों की बीमारियां हो सकती हैजैसे आंख से पानी आना,आंख लाल हो जाना,सूजन आ जाना,आंखों में कीचड़ का आना जिससे आंख सुबह सो कर उठने पर चिपक जाती है।कभी-कभी कंजेक्टीबाइटिक जैसी आंख की बीमारी भी हो जाती है जो एक दूसरे से फैलती है


गले की बीमारी (गलगण्ड) इस रोग में गले के बाहर सूजन आ जाती है जो धीरे धीरे बढ़ती जाती है ।गले में गिल्टियां होने लगती है हाथ पैरों में भी सूजन आ जाती है

हाथी पांव –पैरों में इतनी सूजन आ जाती है कि पैर हाथी के पांव की तरह मोटे तथा भारी हो जाते हैं।

टाइफाइड़-यह रोग दूषित जल से होता है इस रोग में बुखार तेज रहता है तथा तीन तार दिन तक रहता है इस कारण इसे  पता लगाने में तीन चार दिन लग जाते है कि बुखार बुखार टाइफाइड़ का है या कोई अन्य फीवर है।
त्वचा रोग- दूषित जल पीने, नहाने या कपड़े धोने से भी त्वचा रोग हो सकता है।सामानयत:खुजली सूखी होती है।

दूषित जल को घर में ही शुद्ध कर सकते हैं
जब कोई और उपाय उपलब्ध न हो तो–
1.पानी को उबालकर पियें
2.पीने के पानी में फिटकरी का टुकडा घुमादे ,गंदगी नीचे बैठ जाएगी फिर मोटे कपडे से पानी को छान लें।
3.दूषित पानी में तुलसी के पत्तों को ड़ालकर रखें इसमें कीटाणु नष्ट करने की क्षमता होती है।

अपने शरीर को जरूरत से ज्यादा न घटाएं

भार नियंत्रित रखना का ये मतलब नहीं है कि आप खाना पीना छोड़कर बैठ जायें जब तक चक्कर न आने लगे या अल्पाहार से शरीर को एकदम कम न कर लें। इसलिये ऐसे आहार भी न लें कि आप कुपोषण के शिकार हो जायें। पोषक तत्वों वाला आहार लेते रहें।

कभी-कभी बुढ़ापे में भी वसा के जमाव काम आते हैं तब जब आपका वजन उम्र होने के बाद भी कम, वो भी जरूरत से कम हो, तो थोड़ा सा वसा जमाव पड़ गया तो यही वसा से ही आपको ऊर्जा (Energy) मिल सकती है। तो थोड़ा बहुत वजन बढ़ जाने से कोई हानि नहीं है। अधिक उम्र में कभी-कभी खुलकर भूख नहीं लगती, आप ठीक से खाना नहीं खा पाते, उस समय यही वसा आपको दैनिक कार्य के लिये ऊर्जा देगी। आपका शरीर चाहे जितना अनियंत्रित हो नियंत्रित व्यायाम से चुस्त-दुरूस्त रहेगा। व्यायाम से ऊर्जा की खपत होती है। वसा पिघलने से मांस दब जाती है, वो उचित आहार (अधिक फाइबर) से फिर से आपका शरीरभर जायेगा।

बालकों में मोटापा

हाल ही में इटरनेशनल ओबेसिटी टास्क फोर्स ने मोटापा की ओर बढती समस्या को चेतावनी देते हुए कहा है कि अधिक खाने की प्रवृत्ति को त्यागना होगा।

आज की नई पीढी के आहार जैसे पिज्जा,बर्गर,कोक, आइसक्रीम,पास्ता आदि जंकफूड में वृद्धि हो रही है जिससे बालकों तथा किशोरों में मोटापा(obesity) संबंधी संकट बढता जा रहा है। यह भी कहा  जाता वे बालक जिनमें मोटापे(obesity)की प्रवृति होती है या मां बाप  बालकों के खाने पीने की आदतों से बेखबर होते हैं ऐसे बालक मोटापे की ओर बढते जाते हैं।इस तरह का मोटापा आज पूरे विश्व में बढ़ता जा रहा है इस कारण विश्व  स्वास्थ्य संस्था ने इस मोटापे (obesity) को ग्लोबेसिटी नाम दिया है।

बालकों में बढ़ता जा रहा मोटापा आयुर्विज्ञान जगत में चिंता का कारण बनता जा रहा है ।बच्चों के मोटापे में एचडीएल कॉलेस्ट्रोल की कमी तथा एलडीएल कॉलेस्ट्रोल की बढोत्तरी होती है  जिसके कारण बडे होने पर ह्रदयरोग ,उच्चरक्तचाप तथा मधुमेह होने की शंका बढती है।मोटापा  दमा जैसी बीमारी का  कारण  भी बन सकती है।

लडकियों में मोटापा प्रजननक्षमता को प्रभावित करता है। आस्ट्रेलिया के क्वीन एलिजाबेथ हास्पिटल के वैज्ञानिकों का कहना है कि मोटी महिलाओं में गर्भपात की संख्या अधिक होती है।
बलको में मोटापे(obesity)का सबसे महत्वपूर्ण कारण वंशानुगत भी हो सकता   है।दूसरा कारण वसायुक्त आहार  तथा  हर समय  खान पीने की् आदतें मोटापे का महत्वपूर्ण कारण है।बच्चों का बढता हुआ शरीर यदि जंग फूड पर आधारित है तो  उसे अतिरिक्त (ज्यादा भूख) लगती है जो बालक का वजन बढाती है ।यदि मां –बाप कामकाजी (नौकरी पेशा) हों तो बच्चे को पूर्ण रूप से पोषक तत्व नहीं मिलपाता ।
कभी –कभी बच्चा टेंशन में अधिक खाता है जैसे मां बाप के बीच का टकराव हो या बोरियत ,थकान।आजकल बच्चे खेलते भी हैं तो  कंम्प्यूटर पर गेम, जिससे  घंटों कम्प्यूटर पर  बैठे रहने से शरीर में निष्क्रियता आने लगती है जो मोटापे का कारण बनता  है जबकि  बालकों के विकास के लिये उन्हें  संतुलित आहार मिलना जरूरी है। कौनसा आहर कितनी मात्रा में दिया जाय यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

इस संबंध में कुछ जानकारियां

  • -बालक को दिये जाने वाले आहार की संपूर्ण  पूर्ण जानकारी होनी चाहिये।
  • -घर में अधिक कैलरी वाले आहार की जगह संतुलित आहार देने का प्रयास करें।
  • -एक ही समय में तमाम तरह का भोजन  न परोसें कारण हर व्यंजन का स्वाद चखने के चक्कर में अधिक कैलोरी ले लेते हैं।
  • -संतुलित आहार में मिश्रित दालों का समावेश होना जरूरी है, पत्तेदार सब्जियां,मौसमी फल  अवश्य  होना चाहिये।
  • -बच्चों को भोजन नियमित समय पर दें, तथा चबा-चबा कर खाने की बात समझायें।
  • -बच्चों को घर बाहर तथा स्कूल में खेलने को प्रेरित करें।
  • -मोटे बालक को नियमित रूप से व्यायाम करना सिखायें।
  • -बच्चों को पर्याप्त नींद लेने दें, ये उर्जा  प्रदान करती है। बच्चों मेंजल्दी सोने तथा जल्दी उठने की आदत डालनी चाहिये ।
  • -मां-बाप को बच्चों के अंदर अच्छी आदतों को डालने के लिये खुद की आदतों में सुधार लाना जरूरी है।
  • -बच्चों को पुरस्कृत करने के लिये टॉफी चोकलेट की जगह खेलकूद की सामाग्री या अच्छी पुस्तकें देनी चाहिये।
  • -बालक की  अवहेलना कदापि नकरें कारण ये उसके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के लिये घातक हो सकता है।  

फलों के रस से करें रोगों का इलाज

किस फल के रस से, कौन से रोग का करें इलाज

फल के रस का नियमित सेवन किया जाये तो यह स्वास्थ के लिये लाभकारी होता है परंतु इससे भी ज्यादा जरूरी यह समझना है कि किन किन फलों का संयोजन(मिलाकर)  उनका रस निकाल कर सेवन करने से कई बीमारियों से मनुष्य दूर रह सकता है साथ ही रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ा सकता है
लाभकारी फलों के रस से तमाम बीमारियों का इलाज —
1.शरीर की रोगप्रतिरोधक शक्ति (इम्यून पावर) बढ़ाने के लिये
दो गाजर,एक छोटा टुकड़ा अदरक,एक सेब सबको मिलाकर मिक्सी में पीसकर रस निकाल लें इस तरह से एक ग्लास रस रोजाना नाश्ते के साथ लेते रहें
2.कॉलेस्ट्रॉल घटाएं– एक सेब, एक ककड़ी के चार टुकड़े करके,सात गेहूं के जवारे (यानि गेहूं के दाने गमले में उगा लीजिये अब घांस जैसे पत्ते निकलते रहेंगें वही है जवारे)इन सब को पीसकर प्रति दिन एक ग्लास सुबह नाश्ते में सेवन करें।
3.पेट की गड़बड़ी तथा सरदर्द मिटाएं– ककड़ीचार पांच टुकड़े,थोड़ी पत्तागोभी,सलाद के पत्ते सबको पीस लें रोज सुबह इसके रस का सेवन करें।
4.सांस की बदबू हटाएं तथा अपना रंग निखारे-दो टमाटर,दो सेब को मिलाकर रस निकाल लें रोजाना नाश्ते में पियें। अद्वितीय लाभ होगा।
5.किसी किसी के शरीर का तापमान हमेशा बढ़ा रहता है उसे नार्मल करने के लिये-
एक करेला,दो सेब का रस रोजाना नाश्ते में सुबह सेवन करें। इससे और भी फायदे हैं जैसे मुंह से बदबू का आना ,किसी- किसी की पेशाब से अधिक बदबू आती है सब ठीक हो जायेगा।
6.त्वचा में कांति तथा नमी बनाए रखे- रूखी त्वचा है तो दो संतरे,दो तीन अदरक का टुकड़ा,एक ककडी को पीस कर रस प्रति दिन पियें।त्वचा चमकदार हो जायेगी।
7.पथरी नाशक—अनानास के पाँच टुकड़े, दो सेब, तरबूज के कुछ टुकड़े इनका रस प्रति दिन सेवन करें यह यूरिनरी सिस्टम की सभी परेशानियों को दूर तो करेगी ही साथ किड़नी फंक्शन को सुधारकर पथरी का नाश करने में सहायक है।
8. मधुमेह रोगियों के लिये,शर्करा (शूगर )को नियंत्रित रखेएक नाशपाती,छोटा अदरक का टुकड़ा,एक करेला,एक सेब, ककड़ी के चार टुकड़े,चार पाँच तुलसी के पत्ते,एक संतरा या मोसमी सबको मिलाकर रस निकाल लें इसे रोज सुबह नाश्ते में सेवन करें।रक्त शर्करा पर नियंत्रण तो होगा ही मधुमेह से संबंधित अन्य परेशानियां भी दूर होंगी,साथ रोगी को शक्ति भी देगा यानि मधुमेह से होने वाली कमजोरी भी ठीक करेगा।
9.रक्तचाप को नियंत्रित रखना में सहायक – चार पांच गाजर,दो सेब ,एक नाशपाती,आम के कुछ टुकड़े सबको मिलाकर रस बनाया जाये प्रति दिन इसका सेवन किया जाये तो रक्तचाप को नियंत्रित कर शरीर का विकास भी करेगा।
10.कब्ज को खत्म करने वाला रस-दो केले, कुछ टुकड़े अनानास के, इसमें दूध मिलाकर रोज सेवन करें कब्ज दूर करेगा।शरीर को अत्यंत उपयोगी विटामिन्स तथा शक्ति प्रदान करेगा ।
11.संपूर्ण शक्ति दायक रस –कुछ अंगूर,तरबूज के टुकड़ेऔर दूध सबको मिलाकर रस बनाया जाय फिर दो बड़े चम्मच शहद मिलाकर पियें।शरीर की सभी आवश्यक तत्वों की पूर्ति होगी ।शारीरिक शक्ति में वृद्धि होगी।इस रस का कोई भी सेवन कर सकता है।
नोट- इस प्रकार फलों के संयोजन से बनाया गया फल का रस सेवन करें तो बिना दवाईयों के,कम पैसों में हम अना शरीर तंदरूस्त तथा निरोग रख सकते हैं।

लिवर हमारे शरीर का अहम हिस्सा है

लिवर की खराबी का असर  पूरे शरीर पर पडता है।शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता में भी  इसका बडा योगदान है। अपने खान पीने पर ध्यान दें.ताकि लिवर चुस्त दुरूस्त रहे। हमारे शरीर में कई अंग ऐसे हैं, यदि एक खराब हो जाये तो दूसरे से काम चलाया जा सकता है लेकिन ह्रदय,लिवर हमारे शरीर में एक ही है।
इन सब में से लिवर के रोग ज्यादा समस्या खड़ी करते हैं। ह्रदय रोग फिर भी दवाईयों उपचारों से ठीक होना संभव हो सकता है।परंतु लिवर में यदि खराबी हो जाय तो पूरा शरीर प्रभावित होता है।लिवर का काम बेहद विस्तृत तथा जरूरी होता है।

लिवर फंक्शन
लिवर का काम पूरे शरीर की मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करना है जो कुछ भी खाया पिया जाता है सब लिवर तक पहुंचता है और फिर लिवर ही उनमें से जरूरी तथा गैर जरूरी, में बांटकर उनका इस्तेमाल सुनिश्चित करता है।
उपयोगी तत्वों को रक्त के जरिये शरीर अन्य भागों तक पहुंचाता है तथा अनुपयोगी तत्वों को शरीर से बाहर निकालने के लिये उपयुक्त अंगो तक पहुंचाता है।

  • ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में बदलता है
  • जिगर ऐसे पदार्थ बनाता है जो चर्बी को तोड देता है
  • प्रोटीन के अवशिष्टों को यूरिया में बदल कर किडनी में किडनी में पहुंचाता है जो पेशाब के जरिये बाहर निकालता है
  • लिवर खून से हानिकारक तत्वों को जैसे अलकोहल को बाहर निकालता है
  • लिवर का शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में इसका बडा रोल है जैसे लिवर में कुछ भी गडबडी होती है तो शरीर के बाकी सभी हिस्सों  का काम भी गडबडा जाता है।

लिवर  रोग(बिमारियों) की सूची काफी लंबी है…..
चिकित्सा विज्ञान, लिवर रोगों की अधिकता को देखते हुए काफी ध्यान दे रहे हैं यहां तक कि इसके प्रति जागरूकता पैदा करने के लिये लिवर डे भी वल्ड में डिक्लेयर किया जाने लगा है

लिवर रोगहेपिटाइटिस,सिरोसिस,कैंसर,पीलिया  ये लिवर में होने वाले आम रोग हैं
आधुनिक जीवन शैली की वजह से लिवर रोग बढ़ता है जो आसानी से पता नहीं लगता है। जब तक पता लगता है काफी बढ़ चुका होता है।
लोगों की रूची घर के खाने से ज्यादा बाहर के जंक फूड में  बढ़ती जा रही है, शराब रोजमर्रा की लाइफ में बढ़ती जा रही है ।शराब तथा जंक फूड़ के मेल से लिवर पर बुरा प्रभाव पड़ता है कारण दोनों ही लिवर पर अतिरिक्त मात्रा में चर्बी को जमा करता है जिसकी वजह से लिवर बिमारी का घर बनता जाता है।इन दोनों तत्वों से दूर रह कर हम अपने जिगर को बचाकर तमाम बीमारियों से दूर रह सकते हैं।
किडनी और हार्ट फेल का तो फिर भी इलाज हो सकता है मगर लिवर डैमेज हो जाये तो एक ही तरीका रह जाता है जो बहुत मुश्किल तथा सबके बस का नहीं है। एक्सपर्ट रिपोर्ट में बताया गया है कई प्रकार के जंक-फूड खाने की  वजह से हैपेटाइटिस ए एवं ई की चपेट में आ सकते हैं।जिसे साधारण पीलिया ही समझा जाता है- लेकिन जल्दी ही उससे  लिवर डैमेज की बात सामने आ जाती है। लिवर का एक हिस्सा कभी-कभी इमरजेंसी में  ट्रांस्पलांट करवाया जा सकता है। देश में आखिर कितने लोगों की ऐसा ट्रीटमैंट पाने की हैसियत रखते हैं। खैर जो भी हो, इन रिपोर्टों से लिवर की बीमारीयों से ग्रसित रोगियों में आशा की एक किरण देखने को मिलती है। वैसे विदेश में लिवर ट्रांस्पलांट का ट्रेंड चल निकला है  लिवर डोनर को एक आप्रेशन करवाना होता है जिस में उस के लिवर का एक हिस्सा निकाला जाता है  तथा मरीज को दिया जाता है ।इस पर कितना खर्च आता है, मरीज को एवं उस के डोनर को कितने दिन हास्पीटल में रहना होता है, लिवर की किन बीमारियों को इस से ठीक कर पाना संभव है- एवं देश में किन किन सैंटरों पर ऐसा आप्रेशन करवाना संभव है।
वैसे तो ये सुविधाएं देश के महानगरों में ही उपलब्ध होती हैं। लेकिन फिर भी अगर हम समय तरह अपने लिवर की सेहत की खातिर अपनी खान-पान को सुधार ही लें तो कितना बेहतर होगा। प्रकृति के वरदानों का हमें तभी अहसास होता है जब हम कभी कभी अपनी लापरवाही (या बेवकूफी) की वजह से किसी ऐसी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं।

लिवर की बीमारियों से बचने के सरल उपाय…….
कृपया जंक फूड से और रास्ते  बिकने वाले खाद्य पदार्थों तथा अलकोहल से दूरी बना कर रखें। और पीने वाले पानी की स्वच्छता का हमेशा ध्यान रखें—- हैपेटाइटिस ए एवं इ ऐसे खाद्य पदार्थों से ही अपनी चपेट में लेता है।

हैपेटाइटिस ए के इंजेकश लगवायें
अध्ययन दल के प्रमुख यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बर्मिंघम (यूएचबी) के प्रोफेसर टॉम इलियट कहते हैं,  परीक्षण से पता चलता है कि तांबे के इस्तेमाल से  काफी हद तक हानिकारक जीवाणु से मुक्त रहा जा सकता है।”
उन्होंने कहा कि कॉपर बायोसाइड के इस्तेमाल से जुड़े शोध से भी पता चलता है कि तांबा संक्रमण को दूर करता है। अतः हमें रात भर ताम्बे के पात्र में पानी रखकर सुबह खाली पेट पीने से निश्चित लाभ होगा